भारत से बांधों के मामले में कहीं पीछे है चीन

नयी दिल्ली : संसद के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन बांध सुरक्षा विधेयक-2018 पेश किया गया। इस विधेयक का उद्देश्य भारत में बांधों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत कानूनी और संस्थागत कार्ययोजना मुहैया कराना है। भारत में बांधों की सुरक्षा के लिए कानून की कमी के कारण यह चिंता का मुद्दा है। बांधों का निर्माण वैसे भी देश में बड़ी बहस का मसला बनता रहा है। हालांकि सच्चाई यह भी है कि देश के तेज विकास के लिए ऊर्जा जरूरतें पूरी करनी होंगी। इसके लिए बांध बनाने ही होंगे लेकिन परिस्थिति की संतुलन को भी बनाए रखना जरूरी है।
अमेरिका और चीन के बाद सबसे बड़े बांध भारत में हैं। यहां 5,200 से अधिक बड़े बांध हैं और लगभग 450 निर्माणाधीन हैं। इसके अलावा हजारों मध्यम और छोटे बांध हैं।
ये हैं प्रावधान
यह विधेयक वर्तमान में मौजूद सलाहकार निकाय के रूप में मौजूद केंद्रीय बांध सुरक्षा संगठन (सीडीएसओ) और राज्य बांध सुरक्षा संगठन (एसडीएसओ) की जगह प्रत्येक राज्य के लिए नियामक निकाय के रूप में एक राज्य बांध सुरक्षा प्राधिकरण (एसडीएसए) और एक राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (एसडीएसए) की स्थापना सुनिश्चित करता है। एनडीएसए दिशानिर्देशों का एक ढांचा स्थापित करेगा, जिसके अनुसार बांधों की सुरक्षा को बनाए रखा जाना है। इस विधेयक में बांधों का निर्माण करने वाली कंपनियों को लापरवाही के लिए और सुरक्षा मानदंडों का पालन न करने पर दंडित करने के प्रावधान भी शामिल है।
सुरक्षा बिल क्यों है जरूरी
भारत के 75 फीसद बड़े बांध 25 वर्ष से अधिक पुराने हैं। 164 बांध सौ साल से भी अधिक पुराने हैं। पूर्व में अलग-अलग समय पर देश के भीतर 36 बांधों के टूटने से न केवल पर्यावरणीय क्षति हुई बल्कि हजारों लोगों की जान भी जा चुकी है। इनमें राजस्थान के ग्यारह, मध्य प्रदेश के दस, गुजरात के पांच, महाराष्ट्र के चार , आंध्र प्रदेश के दो और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, तमिलनाडु ओडिशा के एक-एक बांध शामिल हैं। 1979 में गुजरात में स्थित मच्छू -2 बांध के टूटने से 1,800 लोगों की मौत हो गई थी।
राज्य क्यों हैं विरोध में
कानून बनने के बाद प्रत्येक राज्य में स्थित बांधों की सुरक्षा के लिए एसडीएसए स्थापित किया जाएगा। एक राज्य के स्वामित्व वाले बांध, जो किसी अन्य राज्य में स्थित हैं, या केंद्रीय लोक सेवा उपक्रमों (सीपीएसयू) के अंतर्गत आने वाले बांध या वो बांध जो दो या दो से अधिक राज्यों में फैले हैं, सभी एनडीएसए के अधिकार क्षेत्र में होंगे। इसी कारण से तमिलनाडु जैसे राज्यों को ओर से विधेयक का विरोध किया जा रहा है। क्योंकि यह राज्य केरल में कई बांधों का प्रबंधन करता है, मुल्ला पेरियार बांध उनमें से एक है। विरोध करने वाले राज्यों को डर है कि यह विधेयक उनकी शक्ति कमजोर करेगा। 2014 में तमिलनाडु और केरल सुप्रीम कोर्ट में गए थे। तमिलनाडु अपने यहां बांधों की जल भंडारण क्षमता में वृद्धि करना चाहता था, जबकि केरल ने सुरक्षा का हवाला देते हुए विरोध किया था। चूंकि जल राज्य का विषय है, लिहाजा कांग्रेस, तेदेपा, अन्नाद्रमुक और बीजद जैसे राजनीतिक दलों ने भी इस विधेयक का विरोध किया है।

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