भारत और जापान दोनों को कवि सूरदास से प्रेरणा लेने की जरूरत 

कोलकाता – जापान के हिंदी विद्वान प्रो. तेजी सकाता ने भारतीय भाषा परिषद में ‘ब्रज संस्कृति और सूरदास’ पर बोलते हुए कहा कि भारत और जापान शांतिप्रिय देश हैं और दोनों देशों की संस्कृतियाँ प्रेम और भाईचारे पर टिकी हैं। ब्रज संस्कृति ने इस देश में प्रेम का महान आदर्श एक ऐसे समय उपस्थित किया जब इसकी सबसे अधिक जरूरत थी। मैंने गोवर्धन की ब्रजभूमि की पूरी परिक्रमा पैदल की है और सूरदास से बहुत प्रभावित हूँ। वल्लभाचार्य की प्रेरणा से ही सूरदास ने अंधा होने के बावजूद कृष्ण के सौंदर्य का ऐसा वर्णन किया जो आँख वाले भी नहीं कर सकते।  रविप्रभा वर्मन ने उनसे संवाद करते हुए पूछा कि आखिरकार ब्रज संस्कृति ने उन्हें क्यों प्रभावित किया तो इसके जवाब में तेजी सकाता ने कहा कि उन्हें ब्रज भूमि ने ही भारत से प्रेम करना सिखाया। मुख्य अतिथि के रूप में बांग्ला के प्रमुख प्रकाशक सुधांशु शेखर दे ने अपने वक्तव्य में कहा कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने सूरदास को अपनी एक कविता में नमन किया है। चैतन्य सूरदास से नौ साल छोटे थे और दोनों ने ही भारत में प्रेम का गान किया।

भारतीय भाषा परिषद विभिन्न भाषाओं के बीच संवाद का मंच बन रही है, यह कोलकाता के लिए एक गौरव की बात है। परिषद की अध्यक्ष डॉ.कुसुम खेमानी ने जापानी विद्वान तेजी सकाता का स्वागत करते हुए कहा कि हिंदी विश्‍व में ऐसे विद्वानों की वजह से प्रचारित और प्रसारित हो रही है। अध्यक्षीय भाषण देते हुए डॉ. प्रेम शंकर त्रिपाठी ने तेजी सकाता के ब्रज प्रेम और सूरदास के उद्गारों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सूरदास ने कृष्ण भक्ति को प्रसारित करने में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। इस संवाद सभा का संचालन श्रीमती बिमला पोद्दार ने किया। मंच पर उपस्थित थे श्री राजीव लोचन कानोड़िया। परिषद के मंत्री नंदलाल शाह पुष्पगुच्छ से सभी अतिथियों का स्वागत किया।

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