फोटोग्राफी की भाषा एक ही होती है मगर वह हजार शब्दों को पहुँचाती है

फोटोग्राफ्री की दुनिया में काम करना बेहद चुनौतीपूर्ण है और फोटो पत्रकारिता तो और भी चुनौतीपूर्ण क्योंकि इसमें एक पल की देर भी सारी मेहनत पर पानी फेर सकती है। फोटो पत्रकारिता अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है क्योंकि एक तस्वीर सारी कहानी बयां कर सकती है। इसके बावजूद इस पुरुष प्रधान क्षेत्र में महिला फोटो पत्रकारों की तादाद लम्बे अरसे से कम रही है और आज भी महिलाओं के लिए काम करना इतना आसान नहीं है। ऐसी चुनौतीपूर्ण स्थिति में 20 साल से फोटो पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं सुचेता दास। कई देश – विदेश के महत्पूर्ण मीडिया समूहों तथा समाचार एजेंसियों में काम कर चुकीं सुचेता की छायाचित्र प्रदर्शनी कई देशों में लग चुकी है मगर वे महज फोटो पत्रकार ही नहीं हैं बल्कि नयी पीढ़ी की राह को आसान करने के लिए वे अपना संस्थान ’इमेजेस रिडिफाइन्ड फोटोग्राफी इंस्टीट्यूट’ चला रही हैं। जुझारू फोटो पत्रकार व अध्यापक के रूप में एक सशक्त छाप छोड़ने वाली सुचेता दास के अनुभव जानते हैं –

मुझे बचपन से ही फोटोग्राफर बनना था
मेरे पिता शौकिया तौर पर फोटोग्राफी करते थे। वह तब मेरी तस्वीरें उतारतें। हमारे घर में बहुत से अखबार आते थे और उनमें बहुत सी तस्वीरें छपती थीं तब मुझे लगता था कि एक दिन मैं भी उनकी तरह तस्वीरें खीचूँगी और वह ऐसे ही अखबार में छपेगी। पहली बार सातवीं कक्षा में थी जब उन्होंने बनारस में पहली बार बंदरों की तस्वीरें खींची थी। छुट्टी होती थी तो पिता मुझे ऐसी जगहों पर ले जाया करते जहाँ बहुत सी तस्वीरें खींची जाती थीं। अगर मैं स्कूल के कार्यक्रमों में खींची गयी तस्वीरों को भी याद करूँ तो तस्वीरें खींचते ही मुझे लगभग 27 साल हो गए मगर प्रोफेशनल फोटोग्राफी मैं पिछले 21 साल से कर रही हूँ।

शुरुआत आसान नहीं थी
शुरुआती दिन इतने आसान नहीं थे। मेरे पिता मुझे प्रोफेसर बनाना चाहते थे और मैंने कलकत्ता विश्‍वविद्यालय से ज्योग्राफी ऑनर्स की पढ़ाई पूरी भी की मगर तब भी पढ़ाई के साथ ही फ्रीलॉसिंग करती रही। स्नातक की पढ़ाई के बाद, मेरा नाम एम एस सी के लिए सीयू के साथ जेयू की मेधातालिका में भी आ गया था मगर तब तक मैंने फोटोग्राफी पर ही खुद को केन्द्रित करने का फैसला कर लिया था और इस फैसले ने पापा को थोड़़ा नाराज कर दिया था। तब शुरुआत करना आसान नहीं था क्योंकि मेरे समय में आज की तरह फोटोग्राफी सिखाने के लिए कोई संस्थान नहीं था। इंटरनेट की सुविधा का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। और जहाँ भी जाती लोग सिफारिश माँगते थे और पूछा जाता था कि ‘किसने भेजा है या फिर शाम को मैं क्या कर रही हूँ?’ कई बार ऐसा भी हुआ कि मेरी तस्वीरों की तारीफें की गयी मगर सवाल का जवाब से असन्तुष्ट होने पर उनको खारिज भी कर दिया गया। ऐसी स्थिति में टाइम्स ऑफ इंडिया के स्थानीय सम्पादक उत्तम दा ही थे जिन्होंने मेरे काम को सराहा और प्रोत्साहन भी दिया।

महिलाओं के लिए काम करना तब भी आसान नहीं था और अब भी आसान नहीं है
महिलाओं के लिए काम करना तब भी आसान नहीं था और अब भी आसान नहीं है। तब आज की तरह इंटरनेट नहीं था इसलिए शोध करना हो या कुछ खोजना कहीं अधिक कठिन था और मेहनत अधिक करनी पड़ती थी। अच्छा काम करने पर भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अवसर और सुविधाएं कम मिलती थीं क्योंकि मान लिया जाता है कि पुरुषों का काम कहीं अधिक बेहतर है। अगर मैं अपनी बात करूँ तो मैंने कभी किसी नियोक्ता को किसी काम या असाइन्मेंट के लिए मना नहीं किया और सुविधाएं भी अधिक नहीं लीं। असाइनमेंट के दौरान भी बहुत से हार्ड न्यूज यानी गम्भीर खबरें कवर कीं, पत्रकारिता के दौरान पुलिस लाठीचार्ज, खदान विस्फोट और आग जैसे हादसों को कवर करते समय में कई बार चोट लगी,घायल भी हुई।

अब तक 62 राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी हूँ
मेरी ली गयी तस्वीरें ‘टाइम्स’, ‘वॉशिंग्टन पोस्ट’, ‘लंदन टाइम्स’, ‘नेशनल ज्योग्राफिक वेब पेज’, ‘न्यूज वीक’, ‘न्यूयार्क टाइम्स’ जैसी कई समाचार पत्रों तथा मीडिया में प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘राइटर्स इंटरनेशनल न्यूज एजेंसी’, ‘गल्फ न्यूज (दुबई)’ से लेकर ‘एसोसिएटेड प्रेस’ से लेकर कोलकाता के मशहूर समाचार पत्रों के लिए काम किया है। अब तक 62 राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय अवार्ड जीत चुकी हूँ जिनमें ‘वर्ल्ड प्रेस अवार्ड’, ‘गोल्डन आई अवार्ड,’ ‘ह्यूमैनिटी फोटो अवार्ड’, नेशनल ज्योग्राफी अवार्ड मास्टर कप’ योनहॉप इंटरनेशनल प्रेस फोटो अवार्ड, लेकर भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा ‘नेशनल नेशनल मीडिया ग्रांट (2 बार), नेशनल प्रेस फोटो अवार्ड (तीन श्रेणियों में) जैसे कई सारे अवार्ड शामिल हैं। ब्रिटेन में 2012 वर्ल्ड फोटोग्राफिक क्लब में मेरी तस्वीरों को लेकर 2011 का सर्वश्रेष्ठ फोटोग्राफर चुना गया। दक्षिण एशिया की सबसे अधिक बिकने वाली पत्रिका बेटर फोटोग्राफी में भारत की फोटो पत्रकार के रूप में चुना गया। 2012 में इंडियन नामक पुस्तक भी प्रकाशित हुई है और संस्कृति मंत्रालय के कैलेंडर के लिए भी मेरी तस्वीरें इस्तेमाल की गयी हैं। इस समय में अपना समय मानव कल्याण से जुड़ी परियोजनाओं और विकासशील देशों के सामाजिक विकास में लगा रही हूँ।

नयी पीढ़ी के लिए रास्ते आसान करना चाहती हूँ
हमारे समय में कोई संस्थान नहीं था, मार्गदर्शक नहीं था और जब इमेजेस रिडिफाइंड शुरू किया तो सोच यही थी कि नयी पीढ़ी के लिए रास्ते आसान बना सकूँ। फटोग्राङ्गी में डेढ़ साल का डिप्लोमा देने वाला हमारा संस्थान एकमात्र संस्थान है। इमेजेस रि़डिफाइन्ड भारत का एकमात्र संस्थान है जहाँ विद्यार्थी 1 साल से 6 महीने का डिप्लोमा फोटो पत्रकारिता में पाते हैं। संस्थान शुरू करने के बाद अब फोटो पत्रकारिता के लिए वक्त कम मिलता है अब मैं जरूरतमंदो वंचितों के लिए काम करना चाहती हूँ और इसका असर भी पड़ता है। मेरे विद्यार्थी मशहूर मीडिया संस्थानों में काम कर रहे हैं।

कुछ लोगों को देखकर समूचे क्षेत्र के बारे में गलत धारणा न बनाएं
अच्छे और बुरे लोग पत्रकारिता में ही नहीं बल्कि हर जगह हैं इसलिए कुछ लोगों को देखकर समूचे क्षेत्र के बारे में राय नहीं बनानी चाहिए। फोटोग्राफी की भाषा एक ही होती है मगर हजार शब्दों को पहुँचा सकती है। मैं युवाओं से एक ही बात कहना चाहूँगी कि वे अपने काम के प्रति ईमानदार रहें। अपना सर्वश्रेष्ठ दें और वे इसका हजार गुना वापस पाएंगे।

शुभजिता

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