पद्मश्री लेकर लौटे ‘राजा’ का यूं हुआ स्वागत

रांची (झारखंड)। राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री से सम्मानित पहड़ा राजा सिमोन उरांव शनिवार को रांची लौटे। रेलवे स्टेशन पर अखिल भारतीय आदिवासी महासभा ने उनका शानदार स्वागत किया। उनके सम्मान में ढोल-नगाड़े और गाने-बाजे के साथ सैंकड़ों लोग मौजूद थे। सिमोन उरांव राजधानी एक्सप्रेस से नई दिल्ली से रांची आए। स्टेशन पर सबसे पहले उर्सलाइन स्कूल की स्टूडेंट्स ने सिमोन उरांव को बुके देकर स्वागत किया।

स्टेशन पर सिमोन उरांव को देखने भीड़ लगी हुई थी। यात्री और रेलवे कर्मचारी पद्मश्री से सम्मानित उरांव की फोटो मोबाइल में कैद करते दिखे।

सिमोन ने जब बांध बनाना शुरू किया था तो लोग उनका मजाक तक उड़ाते थे। बीते मंगलवार को इन्हें राष्ट्रपति ने पद्मश्री सम्मान से नवाजा।

स्टेशन से बाहर खुले जिप्सी में उरांव को सम्मान के साथ ले जाया गया। वे सबसे पहले रेलवे गेस्ट हाउस गए। वहां पर उनका जोरदार स्वागत हुआ।

सिमोन के स्वागत में युवा कई बाइकों पर सवार होकर आए थे। वे सिमोन के स्वागत में सड़क के दोनों ओर मौजूद रहे।

छोटी-छोटी नहरों को मिलाकर तीन बांध बना डाले

सिमोन ने छोटी-छोटी नहरों को मिलाकर तीन बांध बना दिया। आज इन्हीं बांधों से करीब 5000 फीट लंबी नहर निकालकर खेतों तक पानी पहुंचाया जा रहा।

सिमोन झारखंड के रहने वाले हैं। इनकी उम्र 83 है। ये पहड़ा राजा हैं।

हौसले पर उम्र को नहीं होने दिया हावी

सिमोन का कॉपी-किताब से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं रहा। न कोई तकनीक और न ही पैसे थे। इनके पास था तो सिर्फ जिद और कुछ कर गुजरने का जज्बा।

पहड़ा राजा सिमोन उरांव ने अपने हौसले पर उम्र को कभी हावी होने नहीं दिया।

बाबा के नाम से प्रसिद्ध सिमोन ने वह कारनामा कर दिखाया, जो सरकारी मशीनरियां करोड़ों खर्च करने के बाद भी नहीं कर पाईं।

साल में तीन फसलें उगाई जाती हैं

आज उनके बनाए बांधों से पांच गांवों की सूरत बदल गई है। एक ब्लॉक की यह कहानी पूरे झारखंड के लिए मिसाल बन गई।

सिंचाई सुविधा के अभाव में जहां एक फसल के लाले थे, वहां साल में तीन फसलें उगाई जाने लगीं।

पलायन यहां की सबसे बड़ी समस्या थी। सिमोन को यह कचोटता था। 1961 में वे कुदाल लेकर निकल पड़े।

बांध बनाना शुरू किया। लोग उनका मजाक उड़ाते थे। मगर हार नहीं मानी। धीरे-धीरे ग्रामीणों का साथ मिला और कारवां बनता गया।

ग्रामीणों की आर्थिक समस्याएं दूर करने के लिए फंड बनाया। बैंक में खाता खुलवाया।

अब ग्रामीणों को जरूरत के समय इसी फंड से 10-10 हजार रुपए की सहायता दी जाती है।

 

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