कोलकाता : प्रभाकर माचवे प्रयोगशीलता और सादगी की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने सताईस सालों तक साहित्य अकादमी, नई दिल्ली और पांच वर्षों तक भारतीय भाषा परिषद में हिंदी भाषा और साहित्य की जो सेवा की वह नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत है। हिंदी के मूर्धन्य विद्वान डॉ.इंद्रनाथ चौधरी ने उनकी जन्मशती को महत्वपूर्ण अवसर बताते हुए यह कहा कि वे छह भाषाओं के जानकार और एक चलता-फिरता इंसाइक्लोपिडिया थे। उनके व्यक्तित्व में विरोधाभास भी अनुपूरक के रूप में काम करते थे। उन्होंने कई ग्रंथों का संपादन किया। उनके जीवन की एक बड़ी घटना महात्मा गांधी के निरीक्षण में उनका विवाह है जो 1940 में सादगीपूर्ण ढंग से नौ आने में हुआ था। वरिष्ठ पत्रकार प्रो. राममोहन पाठक ने कहा कि प्रभाकर माचवे का व्यक्तित्व एक कुशल संचारक का व्यक्तित्व था। उन्होंने ‘चौथा संसार’ के संपादन के माध्यम से जन समस्याओं और देश की प्रगति के बाधक तत्वों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उन पर प्रहार किया। ‘कलकत्ता की चिट्ठी’ नामक उनका स्तंभ पूरे देश में चर्चित हुआ। उन्होंने बिना भेद-भाव के सभी पत्र-पत्रिकाओं के लिए विपुल लेखन किया।
तारसप्तक की काव्य परंपरा का उल्लेख करते हुए भारतीय भाषा परिषद के निदेशक डॉ.शंभुनाथ ने बताया कि अज्ञेय के साथ मिलकर प्रभाकर माचवे ने तारसप्तक की योजना बनाई जो साहित्य में प्रयोगों पर जोर देती थी। उनका लक्ष्य था कि जिस तरह विज्ञान में प्रयोग होते हैं उसी तरह साहित्य की प्रगति भी निरंतर प्रयोगों से ही संभव है। अन्यथा समाज और साहित्य में रूढ़ियों का साम्राज्य स्थापित हो जाता है। परिषद की अध्यक्ष डॉ.कुसुम खेमानी ने स्वागत करते हुए कहा कि प्रभाकर माचवे भारतीय भाषा परिषद के बौद्धिक शिल्पकार थे। सभा की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध नाटयविद डॉ.प्रतिभा अग्रवाल ने उनके कुछ संस्मरण सुनाए और उनके व्यक्तित्व के कोमल पक्षों को उद्घाटित किया। उनका कहना था कि प्रभाकर माचवे सिर्फ कवि नहीं थे वे एक अच्छे चित्रकार भी थे और वैसी बहुज्ञता आज दुर्लभ है। परिषद की मंत्री ने बिमला पोद्दार ने सभा का संचालन किया। धन्यवाद देते हुए नंदलाल शाह ने कहा कि हमे ऐसे व्यक्तित्वों का स्मरण करना चाहिए जिनका सांस्कृतिक निर्माण में महत्वपूर्ण रहा है।