धुआं रहित चूल्हा’ परियोजना शुरू करेगी बंगाल सरकार

कोलकाता। बंगाल सरकार कोलकाता और राज्य के 5,000 घरों को ‘धुआं रहित चूल्हा’ प्रदान करने के लिए एक पायलट परियोजना चलाने की योजना बना रही है । धुआं रहित चूल्हा यह निर्णय तब आया जब सरकार को एहसास हुआ कि कई गरीब परिवार पहले महंगे एलपीजी सिलेंडर के लिए भुगतान नहीं कर सकते हैं और फिर अपने बैंक खातों में सब्सिडी जमा होने का इंतजार नहीं कर सकते। यह अंततः पारंपरिक खाना पकाने के तरीकों को खत्म करने का भी प्रयास करता है, जो स्वास्थ्य और वायु गुणवत्ता दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
धुआं रहित चूल्हा
इस परियोजना की शुरुआत शुक्रवार को एक कार्यशाला के साथ की जाएगी। धुआं रहित चूल्हा, जिसे ‘स्मार्ट चूल्हा’ भी कहा जाता है, पारंपरिक ईंधन, जैसे गाय के गोबर, कोयला, जलाऊ लकड़ी और सूखी पत्तियों से संचालित होता है, लेकिन जहां इन ईंधनों का उपयोग करने वाले पारंपरिक चूल्हे धुएं के उत्सर्जन के कारण अत्यधिक प्रदूषण फैलाते हैं, वहीं ये चूल्हे अधिक कुशलता से ईंधन जलाने में सक्षम हैं, जिसके परिणामस्वरूप बहुत कम धुआं निकलता है । पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष कल्याण रुद्र ने यह जानकारी देते हुए कहा कि यह धुआं रहित चूल्हा सभी प्रकार के पारंपरिक ठोस ईंधन को संभाल सकता है।
उन्होंने कहा कि जब दहन अधूरा होता है तो धुआं होता है। चूंकि स्मार्ट ओवन को पूर्ण दहन की सुविधा के लिए डिजाइन किया गया है, इसलिए बहुत कम उत्सर्जन होता है। केंद्र की प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUI) एलपीजी सिलेंडर के लिए सब्सिडी प्रदान करती है, लेकिन इसके लिए प्रत्येक परिवार को पहले सिलेंडर खरीदना पड़ता है और फिर सब्सिडी के लिए इंतजार करना होता है। हालांकि, ऊंची कीमत का मतलब है कि कई परिवारों को पहले से पैसा जुटाना बेहद मुश्किल हो रहा है। एक अधिकारी ने कहा कि कई लोग खाना पकाने के पारंपरिक, अत्यधिक प्रदूषणकारी तरीकों पर वापस लौट आए हैं। रुद्र ने कहा, हमने शहर में खाद्य विक्रेताओं के बीच गैस ओवन और एलपीजी सिलेंडर वितरित किए हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश एलपीजी की ऊंची कीमत बर्दाश्त नहीं कर सके और ठोस ईंधन की ओर लौट गए। ग्रामीण परिवारों के साथ भी यही बातें हो रही हैं। स्मार्ट चूल्हा पीएम 2.5 को 70 से 90 प्रतिशत तक कम कर सकता है। धुआं रहित चूल्हा परियोजना का लक्ष्य पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन को 70 से 90 प्रतिशत तक कम करना है, जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।
अंतरराष्ट्रीय फंडिंग हासिल करने की कोशिश
सूत्रों ने कहा कि डब्ल्यूबीपीसीबी शुरुआत में इस परियोजना के लिए 100 करोड़ रुपये की अंतरराष्ट्रीय फंडिंग हासिल करने की कोशिश कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र फाउंडेशन के नेतृत्व में एक सहयोगात्मक प्रयास, ग्लोबल अलायंस फार क्लीन कुकस्टोव्स के तहत सरकारी अनुदान के माध्यम से वित्त पोषण की सुविधा प्रदान की जाएगी। डब्ल्यूबीपीसीबी का अंतिम उद्देश्य पूरे बंगाल में वायु गुणवत्ता में सुधार करना है। राज्य में 1.5 करोड़ ग्रामीण और शहरी गरीब परिवारों में से 1.1 करोड़ लोग खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन का उपयोग करते हैं, जिससे वायु प्रदूषण का खतरनाक स्तर और समय से पहले मौतें होती हैं।
रुद्र ने कहा कि खाना पकाने के स्वच्छ तरीकों पर स्विच करने से पीएम 2.5 से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी खतरों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इस पहल में प्रति घर प्रति वर्ष 1.2 टन कार्बन डाईआक्साइड उत्सर्जन को बचाने की क्षमता है। पायलट प्रोजेक्ट छह गांवों और झुग्गी-झोपड़ियों वाले परिवारों को कवर करेगा, जिसका लक्ष्य एक लाख ग्रामीण परिवारों तक लाभ पहुंचाना है।
पायलट की प्रारंभिक लागत डब्ल्यूबीपीसीबी द्वारा अपने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) और पर्यावरण मुआवजा (ईसी) भंडार से धन का उपयोग करके वहन की जाएगी। आईआईटी-दिल्ली को धुआं रहित चूल्हों की स्थापना के दौरान और बाद में इनडोर और आसपास की परिवेशी वायु की गुणवत्ता का आकलन करने का काम सौंपा गया है।

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