दिल्ली के युवाओं ने 250 रूपये में शुरू किया स्टार्टअप

कला एक ईश्वरीय वरदान है। ये वो नवाजिश है जो एक कतरा को हीरा बना देती है, एक अदने से तिनके को अमर कर देती है। ‘कला ही जीवन है’ जैसी उक्तियां ऐसे ही नहीं बनी हैं। मानव-अभिव्यक्तियों का सबसे सुंदर माध्यम होती है कला। एक कलाकार अपनी कृतियों के माध्यम से न जाने कितने लोगों को प्रेरित कर सकता है, उनके जीवन में अपनी कूची से रंग भर सकता है। लेकिन सबका जीवन कलामय बना देने वाला यही कलाकार जिंदगी की जद्दोजहद से हार जाता है। जब बात कमाई की होती है तो आमतौर पर उसकी जेबें खाली ही रह जाती हैं।

हम सबने कई जगह पढ़ा है कि कैसे इस दुनिया के महानतम कलाकार पाब्लो पिकासो को एक बार ठंड से बचने के लिए अपनी ही पेंटिंग को जलाना पड़ा, ताकि उसकी गर्मी से उन्हें थोड़ी राहत मिले। आज उनके चले जाने के बाद उनकी एक-एक पेंटिंग करोड़ों में बिकती है। लेकिन सोचिए, अगर उस वक्त लोगों ने उनकी कला की कद्र की होती, तो कितनी ही बहुमूल्य पेंटिंग आग के हवाले होने से बच जातीं। कलाकारों को उनकी कला का सही मूल्य न दे पाना हम सबकी असफलता है।

लेकिन आज के युवा तो हर क्षेत्र में आगे हैं। उन्होंने किसी का मुंह ताकने की बजाय खुद ही कमाई करने का फैसला ले लिया। दिल्ली में भी कला के छात्रों के एक समूह के साथ ऐसा ही कुछ हुआ और मात्र 250 रुपये की लागत से उन्होंने एक स्टार्टअप शुरू किया। उन्होंने हाथ से पेटिंग बनाई हुई टी-शर्ट का कारोबार शुरू किया है। इसी के साथ ही यहां बेल्ट, गुलदान, बैग और तकिए के कवर इत्यादि पर भी पेटिंग बनाकर उन्होंने इसे बाजार में उतारा है। यह समूह ‘वीकलआर्ट डॉट कॉम’ के माध्यम से ऑनलाइन कारोबार भी करता है।

क्या है आइडिया

इस कंपनी को वरूण बकोलिया, मयंक बकोलिया, सैफ, कनिष्क और अजय ने करीब डेढ़ साल पहले शुरू किया था। मयंक बकोलिया के मुताबिक, ‘यह स्टार्टअप वरूण के दिमाग की उपज है। पहले हम चित्रकला प्रदर्शनी में पेटिंग का प्रदर्शन किया करते थे। लेकिन काफी समय तक ऐसा करने के बाद भी पेटिंग सही कीमत पर बिक नहीं पाती थीं। उसके बाद हमने सोचा कि इस हुनर का रोजमर्रा की वस्तुओं पर इस्तेमाल करना चाहिए। हमने 250 रुपये की एक टी-शर्ट ली और उस पर चिलम पीते हुए एक बाबा की पेटिंग बनाई। इस टी-शर्ट की फोटो हमने फेसबुक पर साझा की और हमें काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली। इस तरह से मात्र 250 रुपये की लागत में हमारा कारोबार चलने लगा।’

कला और व्यापार का संगम

रोजमर्रा की वस्तुओं पर पेंटिंग करने के लिए वे एक्रिलिक रंगों का प्रयोग करते हैं, क्योंकि यह कभी उतरते नहीं और ना ही फीके पड़ते हैं। कपड़ों पर लगाने के बाद इन्हें धोने में भी कोई परेशानी नहीं होती है। मयंक के मुताबिक, ‘उनके यहां सबसे कम कीमत पर 250 रुपये में उत्पाद मिल जाते हैं। इसके अलावा वह लोगों की पसंद के हिसाब से भी उनके लिए उत्पाद बनाते हैं। हमारे वेंचर वीकल आर्ट की तरफ से जल्द ही घड़ी के डायल, पर्स, जींस इत्यादि श्रेणियों में भी अपने रंग-बिरंगे उत्पाद भी मिलने लगेंगे।’

दिल्ली के ये कलाकार अलग-अलग जगहों पर अपने सामान का स्टॉल भी लगाते हैं। रंग महोत्सव, कॉमिक कॉन और ऐसी ही और जगहों पर प्रदर्शनियों में वो अपना स्टॉल लगाकर सामान बेचते हैं।

(साभार – योर स्टोरी)

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