जानिए रथयात्रा के तीनों रथों की कहानी

जगन्नाथ भगवान हिंदु धर्म के चार धामों में जगन्नाथ पुरी का बहुत महत्व है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु रामेश्वरम में स्नान, द्वारका में शयन, बद्रीनाथ में ध्यान और पुरी में भोजन करते हैं। भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए बिना चारों धामों की यात्रा अधूरी मानी जाती है। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा प्रारंभ होती है। ऐसा कहा जाता है कि रथ यात्रा के जरिए भगवान मौसी के घर जनकपुर जाते हैं। रथ यात्रा में बलरामजी के रथ को ‘तालध्वज ’ कहते हैं। देवी सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज ’ कहा जाता है। यह सबसे पीछे रहता है। इन तीनों रथों की उंचाई, पहिए और आकृति अलग-अलग होती हैं।

ये है तीनों रथों की खासियत
1. भगवान जगन्नाथ का रथ
इस रथ को गरुड़ध्वज, कपिध्वज या नंदीघोष कहा जाता है। इसमें 16 पहिए होते हैं व ऊंचाई साढ़े 13 मीटर तक होती है। लाल और पीले रंग का लगभग 1100 मीटर कपड़ा रथ को ढंकने के लिए उपयोग में लाया जाता है। इस रथ को बनाने में 832 लकड़ी के टुकड़ों का उपयोग किया जाता है।
इस रथ के सारथी का नाम दारुक है। इस रथ के रक्षक भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज गरुड़ और नृसिंह हैं। रथ पर लगे झंडे को यानी ध्वजा का नाम त्रिलोक्यमोहिनी है। रथ में जय और विजय नाम के दो द्वारपाल होते हैं।
इस रथ के घोड़ों का नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाश्व है, जिनका रंग सफेद होता है। इसके अलावा भगवान जगन्नाथ के रथ की रक्षा के लिए शंख और सुदर्शन स्तंभ भी होता है। रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है, वह शंखचूड़ (एक प्रकार का नाग) नाम से जानी जाती है।
इस रथ में भगवान जगन्नाथ के अलावा अन्य सहायक देवता के रूप में वराह, गोवर्धन, कृष्ण, नृसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान और रूद्र भी होते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ के साथ 8 ऋषि भी चलते हैं जिनके नाम नारद, देवल, व्यास, शुक, पाराशर, विशिष्ठ, विश्वामित्र और रूद्र हैं।
 बलराम जी का रथ
इस रथ का नाम तालध्वज है। यह रथ 13.2 मीटर ऊंचा व 14 पहियों का होता है, जो लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। इस रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। इनके रथ की ध्वजा का नाम उनानी हैं।
इस रथ में काले रंग के 4 घोड़े लगे होते हैं। जिनका नाम त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनवा है। इस रथ में नंद और सुनंद नाम के 2 द्वारपाल होते हैं। रथ की रक्षा के लिए हल और मुसल भी होते हैं। इनके रथ की शक्तियों के नाम ब्रह्म और शिवा है। इनके रथ को खिंचने के लिए वासुकी नाग के रुप में रस्सी होती है।
इस रथ में बलराम जी के अलावा अन्य सहायक देवता के रूप में गणेश, कार्तिकेय, सर्वमंगल, प्रलंबरी, हलायुध, मृत्युंजय, नटवर, मुक्तेश्वर और शेषदेव होते हैं। बलराम जी के रथ के साथ अंगिरा, पौलस्त्य, पुलह, असस्ति, मुद्गल, अत्रेय और कश्यप ऋषि भी चलते हैं।

देवी सुभद्रा का रथ
सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है। इसके अन्य नाम दर्पदलन और पद्मध्वज भी है। 12.9 मीटर ऊंचे 12 पहिए के इस रथ में लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का इस्तेमाल होता है।
इस रथ के रक्षक जयदुर्गा और सारथी अर्जुन होते हैं। इस रथ की द्वारपाल गंगा और यमुना होती हैं। इनके रथ की ध्वजा का नाम नदंबिका है। इनके रथ की रक्षा के लिए पद्म और कल्हर के रुप में शस्त्र होते हैं।
इस रथ की शक्तियों के नाम चक्र और भुवनेश्वरी है। सुभद्रा जी के रथ में लाल रंग के 4 घोड़े होते हैं। जिनके नाम रोचिक, मोचिक, जिता व अपराजिता है। इस रथ को खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचुड़ा कहते हैं।
सुभद्रा जी के इनके अलावा रथ में सहायक देवियों के रुप में चंडी, चामुंडा, उग्रतारा, वनदुर्गा, वराही, श्यामा, काली, मंगला और विमला नाम की देवियां होती हैं। इनके रथ के साथ भृगु, सुपर्व, व्रज, श्रृंगी, ध्रुव और उलूक ऋषि चलते हैं।

(साभार – दैनिक भास्कर)

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