इन दिनों ईश्वर भी सकते में हैं…समझ नहीं पा रहे हैं कि अब तक तो वे मनुष्यों को बनाते आ रहे हैं….मनुष्य खुद को ईश्वर की सन्तति कहता भी है मगर यह दौर नया है। आजकल के बच्चे अपने माता – पिता के भी तारणहार बने बैठे हैं…वो तय करते हैं कि उनके पिता के लिए वह कैसी जिन्दगी तय करेगा…यहाँ तक कि जाति और धर्म भी तय करेगा। हर कोई बेस्ट हिन्दू या बेस्ट मुसलमान बनने की रेस लगा रहा है। आप गौर से देखिए तो पता चलता है कि इनकी होड़ जरूरी मुद्दे और योजनाएँ तो पीछे छूट चुकी हैं। पक्ष से लेकर विपक्ष तक, सब के सब गोटी फिक्स करने में लगे हैं। गरीबी से लेकर महिलाओं की सुरक्षा और किसानों की आत्महत्या जैसे मुद्दे तो जैसे गायब हैं। हालांकि यह सूची बहुत बड़ी है मगर आपके तारणहार हिन्दुत्व का एजेंडा तय कर चुनावी नैया पार करने में लगे है।
मंदिरों के चक्कर लगाये जा रहे हैं तो हनुमान की जाति तय की जा रही है। दलित, वंचित के बाद अब उनको ब्राह्मण बनाया जा रहा है। अगले साल के चुनाव तक हवा में कितना जहर घोला जाएगा…आप बस इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते और यह कौन सा रूप लेने जा रहा है। यह हो रहा है जनता के नाम पर जिसे सही मायने में नेता कुछ भी नहीं समझते। हम बँटे हुए हैं और वह हमें बाँटे जा रह हैं और हम बँटते जा रहे हैं वरना क्या यह सम्भव था कि सोशल मीडिया मॉब लीचिंग का कारण बन पाता है म जब तक अपनी जाति और धर्म के नाम पर लड़ते रहेंगे….वह लड़ाते रहेंगे। यह हमको कय करना है कि हम क्या चाहते हैं…और कैसी दुनिया देकर देकर जाना चाहते हैं.,एक बार सोचिएगा जरूर।