चेन्नई: पानी के हाहाकार के बीच ‘इंद्र’ की मिसाल

चेन्नई :  पानी के संकट से जूझ रहे चेन्नई में हर कोई प्यास बुझाने के लिए पैसा और समय दोनों खर्च कर रहा है। शहर के दक्षिणी हिस्से का हाल और बुरा है लेकिन शहर में एक व्यक्ति ऐसा है जो चेन्नई में पानी के नल का कनेक्शन लेने से लगातार इनकार करता रहा है। 69 साल के एस इंद्र कुमार बड़े गर्व से कहते हैं कि उन्हें जल बोर्ड की ओर से कनेक्शन लेने की कई बार अपील की गयी। उत्तरपूर्वी मानसून में देरी के कारण शहर के दक्षिणी हिस्से के सभी जलाशय सूख चुके हैं। इस समय लोग चेन्नई मेट्रोवॉटर बोर्ड के पानी के टैंकरों पर निर्भर हैं, जिनकी बुकिंग या वेटिंग तीन तीन सप्ताह तक जा रही है। इसका फायदा उठाते हुए 40 डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच निजी टैंकर खूब पैसा बना रहे हैं लेकिन इंद्र कुमार के पास पानी का भण्डार है। सात महीने बाद हुई बारिश में इंद्र कुमार ने इतना पानी इकट्ठा कर लिया है कि लोगों को हैरत हो सकती है।

इंद्र कुमार कहते हैं, “पिछले दो दिनों में तीन सेंटीमीटर तक बारिश हुई है। मैंने 18,000 लीटर पानी इकट्ठा करने में सफलता पाई। चेन्नई पानी संकट का सामना कर रहा है, मैं नहीं। “उनके अनुसार, “बारिश का पूरा पानी बेकार चला जाता है लेकिन मेरे घर में ऐसा नहीं होता। यहाँ हम बारिश की हर बूंद इकट्ठा करते हैं।” क्रोमपेट में स्थित बाहर से पुराने फ़ैशन के बने अपने दोमंज़िले मकान को वो पर्यावरण सुलभ घर बताते हैं। वॉटर हार्वेस्टिंग के उनके अनूठे प्रयास के लिए उनकी ख्याति ‘इको वॉरियर’ के रूप में है। साल 1986 में उन्होंने अपना घर बनवाया था, उसके 12 साल बाद उन्हें पहली बार चुनौती का सामना करना पड़ा था। कुएं का जो पानी मीठा था उसका स्वाद बदल गया। वो कहते हैं, “मैंने तुरन्त रेन वॉटर हार्वेस्टिंग शुरू कर दी और छह महीने में ही पानी की गुणवत्ता में सुधार दिखाई देने लगा। “उन्होंने अपने बच्चों से कहा कि वो अपने स्कूल प्रिंसिपल को सूचना दें कि सुबह की प्रार्थना सभा के समय वो अपने अनुभव साझा करना चाहते हैं। उस दिन वो स्कूल गए और अपना अनुभव साझा कर सीधे अपने काम पर चले गए। इंद्र कुमार बताते हैं, “जब मैं शाम को घर पहुंचा तो मैंने दो अध्यापकों को अपने घर पर इन्तज़ार करते हुए पाया। वो चाहते थे कि मैं उनके घर जाऊँ और उनके कुएं के बारे में अपनी राय बताऊँ। जब पहुँचा तो मैंने वहाँ सतह पर सफ़ेद पदार्थ को तैरते हुए देखा। उन्होंने बताया कि यही पदार्थ छत की टंकी में भी है। “वो कहते हैं, “असल में पुमाल, पल्लवरम, क्रोमपीट इलाक़े में टेरनरी बहुत हैं और ये पदार्थ उनका ही प्रदूषण था। उस दिन मैंने इसे अपना पेशा बनाने का फैसला कर लिया। मैंने तय किया कि मैं हर दिन इसका प्रचार करूँगा और दो लोगों को इसके लिए मनाने की कोशिश करूँगा। साल 1998 से 2000 के बीच 1,000 से अधिक घर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग से लैस हो गए। उनके रेन वॉटर हार्वेस्टिंग प्रोजेक्ट में घर के पास की ढलान का भी कुछ योगदान है जो उनके घर से 50 मीटर की दूरी से ही शुरू होती है। उनके घर के सामने पानी बहकर एक नाली में जाता है। वो बताते हैं, “नाली से होते हुए बारिश का पानी समन्दर में चला जाता है। इस पानी को रोकने के लिए मैंने घर के ठीक सामने एक गढ्ढा बनाया। “इंद्र कुमार कहते हैं, “हमने इस जगह को खोदा और इसमें रेत डाल दी। इसने ज़मीन के अंदर पानी के स्तर को बढ़ने में मदद की। ” इसके अलावा उन्होंने अपने घर की छत पर एक छोटा सा वॉटर टैंक बनवाया है जो बारिश के समय भर जाता है। इकट्टा हुआ पानी भी रेत से छनने की प्रक्रिया से होकर गुजरता है। इसमें एक देसी पौधा सारसापरिल्ला या ननारी तैरता है। वो कहते हैं, “ननारी पानी को शुद्ध करता है।”ये पानी कुएं में गिरने से पहले बिल्कुल ऊपर एक दूसरे फ़िल्टर से होकर गुजरता है। इंद्र कुमार कहते हैं, “मैं इस कुएं का पानी पीता हूँ। इसमें सभी मिनरल्स होते हैं और इसी पानी को मैं पीने के लिए इस्तेमाल करता हूँ। “लेकिन ‘इको वॉरियर’ के इस घर में पर्यावरण के अनुकूल अन्य चीजें भी मौजूद हैं। छत बिल्कुल खाली नहीं, बल्कि हरी भरी है। यहाँ दवाई के गुण वाले पौधे जैसे लेमन ग्रास, तुलसी आदि लगाए गए हैं। वो कहते हैं, “अगर आप इनका सेवन करें तो आपको डॉक्टर के पास नहीं जाना पड़ेगा। इन पौधों से ऑक्सीजन भी मिलती है जिससे सेहत अच्छी बनी रहती है।”

इंद्र कुमार उन लोगों से सहमत नहीं है जो मानते हैं कि बेकार जाने वाला पानी, पानी का स्रोत नहीं हो सकता है।
“अगर आप पूछें कि पानी के स्रोत क्या हैं, तो वो कहेंगे बादल, बारिश, पिघलती बर्फ़ आदि। वो कभी नहीं कहेंगे बेकार पानी। मैं इस बेकार पानी को रिसाइकिल करता हूं और किचन के सारे पानी को पौधों में इस्तेमाल करता हूँ। “वो कहते हैं, “मैं टॉयलेट के लिए केमिकल नहीं इस्तेमाल करता। मैं बैक्टीरिया का भी इस्तेमाल करता हूँ। मेरा टॉयलेट उतना सुंदर नहीं है लेकिन साफ़ ज़रूर है। सिर्फ़ टॉयलेट फ्लश में ही लोग 50 लीटर पानी खर्च कर देते हैं, इतने पानी से नारियल का एक पेड़ बचाया जा सकता है। “इंद्र कुमार घर के पीछे बगीचे की सारी पत्तियों का इस्तेमाल खाद बनाने में करते हैं। इससे वो 200 किलोग्राम आर्गेनिक खाद बनाते हैं, जिसे वो बहुत सस्ती दरों पर बेचते हैं। जहाँ इंद्र कुमार एक घर में वॉटर हार्वेस्टिंग और वेस्ट मैनेजमेंट की मिसाल खड़ी की है, वहीं बहुमंजिला इमारत में रहने वाले एमबी निर्मल ने भी लोगों के सामने एक उदाहरण पेश किया है। निर्मल इमारत की 12वें मंजिल पर रहते हैं और उनकी दोनों बालकनी और बैठक में 17,00 पौधे लगे हुए हैं। निर्मल एक एनजीओ एक्नोरा इंटरनेशनल के प्रेसिडेंट हैं, वो कहते हैं, “कोयम्बेडू बस स्टैंड के पास चेन्नई का ये हिस्सा सबसे प्रदूषित है। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड मेरे अपार्टमेंट में प्रदूषण का स्तर मापने आया था। उन्हें प्रदूषण बिल्कुल नहीं मिला, ये पौधों के कारण था.” लेकिन रेन वॉटर हार्वेस्टिंग और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट में कितना खर्च आता है? इंद्र कुमार कहते हैं, “ये खर्च की बात नहीं है। ये भविष्य का निवेश है। उसी तरह जैसे आप अपने पेंशन फ़ंड, जीवन बीमा आदि में निवेश करते हैं।
(साभार – बीबीसी हिन्दी)

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