महात्मा गांधी का जन्म 02 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था । उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था । वे महात्मा गांधी, गांधी जी, बापू और राष्ट्रपिता कहे जाते हैं । हर साल 02 अक्टूबर के दिन को गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है और संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस दिन को विश्व अहिंसा दिवस घोषित किया है । भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बापू का महत्वपूर्ण योगदान रहा । सत्य और अहिंसा को इन्होंने माध्यम बनाया और ये दोनों बातें हिन्दू धर्म का अंग हैं । आइए जानते हैं, गांधी जी के जीवन पर हिन्दुत्व का प्रभाव
गांधी जी ने लोगों को हमेशा अहिंसा और सत्य के मार्ग के चलने के उपदेश दिए । कहा जाता है कि, धार्मिक ग्रंथों के माध्यम से ही उन्हें ये उपदेश मिले । स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ने के साथ ही बापू हिंदू धर्म संस्कृति, परंपरा, धार्मिक पौराणिक ग्रंथ और लोकमान्यताओं से भी जुड़े । हिन्दुत्व के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा थी । यही कारण था कि, अंतकाल में उनके मुख से ‘हे राम’ निकला । राजघाट में बापू की समाधि में ‘हे राम’ लिखा हुआ है जो कि हिन्दुत्व के प्रति उनके अनन्य निष्ठा को दर्शाता है.
गांधी जी के जीवन पर धर्म का प्रभाव
गांधी जी अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ के दसवें अध्याय में ‘धर्म की झांकी’ में अपने धर्मपारायण श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भागवत गीता, रामायण सुनने, रामरक्षास्त्रोत का पाठ और मंदिर दर्शन आदि का वर्णन करते हैं । राम नाम की महिमा को लेकर गांधी जी लिखते हैं- ‘आज रामनाम मेरे लिए अमोघ शक्ति है । मैं मानता हूं कि उसके मूल में रम्भा बाई का बोया हुआ बीज है ।
पोरबंदर में रहने तक गांधी जी नित्य रामरक्षास्त्रोत का पाठ करने का उल्लेख करते हैं और साथ ही रामायण के परायण को लेकर कहते हैं कि- ‘जिस चीज का मेरे मन में गहरा प्रभाव पड़ा, वह था रामायण का परायण ।’ विलायत में रहते हुए जब उन्होंने गीता पाठ शुरू किया और इसके बाद उन्हें अनुभूति हुई । इसके संबंध में वे कहते हैं कि- श्रीमद्भागवत गीता के इन श्लोकों का मेरे मन में गहरा प्रभाव पड़ा है, जो मेरे कानों में गूंजती रही. तब मुझे अहसास हआ कि यह अमूल्य ग्रंथ है ।
महात्मा गांधी का मानना था कि, जो गीता को कंठस्थ कर उसके उपदेशों को अपने जीवन में उतार लेगा, तमाम परेशानियां के बावजूद भी उसका जीवन सफल हो जाएगा । गीता के उपदेशों के माध्यम से ही गांधी जी ने अहिंसा, कर्म, सद्भावना, निष्ठा और प्रेम आचरण को जीवन का महत्वपूर्ण अंग बनाया ।