एक दूसरे की हिफाजत करेंगे, तभी हम बचेंगे और तभी यह मुल्क बचेगा

अजीब सा मौसम है, हर बात पर बेवजह का शोर है और जिन मुद्दों पर बात करनी चाहिए, उन पर लम्बी खामोशी है। कहीं आग लग रही है तो कहीं पथराव हो रहा हैं, कहीं फतवों का दौर चल रहा है तो कहीं औरतें पिस रही हैं।

हाल ही में तीन तलाक, अजान, गाय और भूखे किसान इस देश के मीडिया चैनलों में छाए रहे। यकीन नहीं होता कि हम इस देश की गंगा – जमुनी संस्कृति में रहने वाले हैं। राजनीति हमें इस्तेमाल कर रही है और हम अपनी खुशी से उसके हाथ का खिलौना बने हुए हैं। जिस देश में सैनिकों की मौत भी विवाद का विषय बन जाए, उस देश का भविष्य क्या होगा, यह सोचने का विषय है।

समझ नहीं आता, अचानक इस देश को क्या हो गया है, हम अजान को नहीं बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं, मंदिर की घंटियाँ हमें परेशान कर रही है, कल को गुरुवाणी से तकलीफ होगी और गिरजाघरों के घंटे हमारी नींद उड़ाएँगे।

हम से मैं पर सिमटता हमारा जीवन हमसे बहुत कुछ छीन रहा है। वसुधैव कुटुम्बकम के इस देश में भाषा और संस्कृति ही एक मात्र माध्यम है जो हमारी संजीवनी है और हमें बचा सकता है। क्या ऐसा नहीं लगता कि जिस गाँव और शहर को एक दूसरे का पूरक होना चाहिए, वे एक दूसरे के दुश्मन बन रहे हैं।

दरअसल, परम्परा हो, धर्म हो या संस्कृति हो, रीति जब कुरीति बन जाए और विकास की राह में रोड़ा बने तो उसे वहीं पर तोड़ देना चाहिए और यह बात हर धर्म पर लागू होती है। तीन तलाक पर मुस्लिम बहनें कम से कम खुलकर बोल रही हैं और जब बोल रही हैं तो यह समस्या भी खत्म होगी, जरूर होगी।

इस्लाम पर आतंक और रुढ़ियों ने कब्जा कर लिया है और इस कब्जे से निकालना शिक्षित व आधुनिक मुस्लिम वर्ग की जिम्मेदारी है। तीन तलाक को लेकर जो हिन्दू ताने कस रहे हैं, उनको भी दहेज, देवदासी, डायन, भ्रूण हत्या जैसी हजारों समस्याओं से लड़कर समाज को आगे ले जाने की जिम्मेदारी निभानी होगी।

अगर आपको बुरके से नफरत है तो 10 हाथ के घूँघट और बाल विवाह पर भी आपत्ति होनी चाहिए और आपत्ति ही नहीं होनी चाहिए, उसे दूर करने के लिए काम करना चाहिए। घरेलू हिंसा तो हर तबके के व्यक्ति कर रहे हैं, अगर आप समानता लाते हैं तो सिर आपका ऊँचा होगा क्योंकि आपको अपने पीछे एक अच्छा समाज छोड़कर जाना है।

इस देश में अजान, आरती, गुरुवाणी और गिरजाघरों की प्रार्थना सभी के लिए जगह होनी चाहिए मगर जब आप सरस्वती पूजा और माँ दुर्गा के पंडालों में फेविकॉल से बजाते हैं तो उस समय आप अपने ही धर्म का अपमान कर रहे होते हैं। धर्म कोई भी हो, उसे पाखंड मत बनाइए।

एक दूसरे की हिफाजत करेंगे, तभी हम बचेंगे और तभी यह मुल्क बचेगा । देश में सरकारे आती – जाती रहेंगी मगर  ये हम हैं जो हमेशा बने रहे हैं, हजारों सालों से और साथ चलकर हमें रहना है हजारों सालों तक। एक का सम्मान दूसरा करेगा, तभी यह देश आगे बढ़ सकता है। अगर स्त्री को माँ कहते हैं तो माँ की दुनिया को बेहतर आप ही को बनाना होगा।

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