इश्क और शादी इंतजार कर सकती है मगर मातृत्व के लिए इंतजार मुमकिन नहीं

फिल्मकार आनिंदिता सर्वाधिकारी उन महिलाओं में हैं जो अपने दम पर चलना जानती हैं। थियेटर के माहौल में पली – बढ़ी आनिंदिता सिंगल मदर्स के लिए एक मिसाल ही नहीं बल्कि अकेले जी रही उन तमाम महिलाओं के लिए एक उम्मीद हैं जिन्होंने अविवाहित जीवन का मतलब एकाकीपन मान लिया है। विश्व सिनेमा में अपनी जगह तेजी से बना रहीं यह युवा फिल्मकार कई फिल्मोत्सवों में बतौर ज्यूरी शामिल हो चुकी है। अपराजिता से आनंदिता सर्वाधिकारी की खास मुलाकात के कुछ लम्हे आपके नाम –

मम्मी – पापा दोनों इप्टा में थे और मैं थियेटर के बीच ही पली – बढ़ी हूँ। महज 3 महीने की उम्र में एक जात्रा से अभिनय का सफर आरम्भ हो गया। मैंने शास्त्रीय नृत्य भी सीखा है और 13 साल की उम्र में दूरदर्शन के लिए एक नृत्य नाटिका बना डाली थी। 17 साल की उम्र में एनएसडी के लिए आवेदन किया मगर पापा को मनाना आसान नहीं था क्योंकि मैं छोटी थी। ऐसे में मम्मी और पापा के दोस्त मेरे साथ खड़े हुए और फिर मैंने निर्देशन में स्पेशिलाइजेशन किया।

1995 में डिप्लोमा कर वापस लौटी और अपना एक थियेटर ग्रुप बनाया और हमनें बंगाल, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में शो किये मगर मैं फिल्मों से जुड़ना चाहती थी तो सीखने के लिए एफटीआईआई पहुँची। इस दौरान मैंने पंकज पराशर को असिस्ट किया। पढ़ाई के दौरान ही शॉर्ट फिल्म बरखा बनायी जिसमें मैंने दिखाने की कोशिश की कि आतंकवाद के नाम पर प्यार को भी इस्तेमाल किया जा सकता है। फिल्म कई फिल्मोत्सवों में सराही गयी और तब मुझे लगा कि सिनेमा की कोई भाषा नहीं होती। मैंने ई टीवी के लिए भी कोनो एक वृष्टि भेजा राते और लवेपीडिया ब्रिटेनिका बनायी। वैसे काम को लेकर तो मैं लगभग सारी दुनिया घूम चुकी हूँ।

फिल्मों में महिला किरदार मजबूत हो रहे हैं मगर इस क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी अभी भी बहुत कम है। बंगाली सिनेमा में भी मजबूत औरतें नहीं दिखतीं। अभी भी उनको खुद को साबित करने के लिए पुरुषों की तुलना में बहुत अधिक काम करना पड़ता है। मैंने अपनी फिल्म साधारण मेये में इस स्थिति को दिखाया है कि लड़कियों के लिए अभी भी बहुत कुछ नहीं बदला है। इस फिल्म को यूनाइटेड नेशंस से सम्मानित किया गया था।

मेरे लिए बच्चा होना काफी मायने रखता है और यह निर्णय लेने में मुझे 2 साल लग गए। मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूँ कि कुदरत ने मुझे माँ बनने की ताकत दी है। मैं इसे जाया नहीं होने दे सकती थी। शारीरिक तौर पर माँ बनने के लिए एक समय सीमा है मगर शादी भावनात्मक मामला है और वह बाद में की जा सकती है। प्यार और शादी जैसी बातें इंतजार कर सकती हैं मगर मातृत्व की समय सीमा नहीं। मैंने स्पर्म बैंक से स्पर्म खरीदा मगर मेरा बेटा अग्निसात दूसरी कोशिश के बाद हुआ। डॉक्टर मुझे हैरत से देखते थे मगर मुझे अस्पताल में भी प्यार मिला और अब भी मिल रहा है। मातृत्व का यह सफर काफी खूबसूरत है और अब काम पर भी मुझे जल्दी लौटना है। अब एक बेटी गोद लेना चाहती हूँ। ईश्वर ने हमें एक ही जिन्दगी दी हैं, इसे खुलकर जीना चाहिए।

शुभजिता

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