आने वाले कल के लिए तैैयार रहें आपके बच्चे

अक्सर हम बच्चों के बड़े होने के दौरान ही उन्हें निर्णय लेने की क्रिया से वंचित करते चलते हैं और फिर जब वे बड़े हो जाते हैं तब एकाएक उन्हें कहने लगते हैं कि अब बड़े हो गए हो, अपने निर्णय खुद ही करो। उस पर जब उनका निर्णय गलत सिद्ध होता है तब हम उन्हें ही दोष देने लगते हैं कि इतने बड़े हो गए, लेकिन अब तक यह समझ नहीं आया कि अपने लिए क्या सही है और क्या गलत है?

बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा होने देना सिर्फ एक कहावत नहीं है, बल्कि उन्हें हर तरह से आने वाले जीवन और हकीकतों के सामने खड़े होने और लड़ने की ताकत देना है। इस मामले में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि जब बच्चे घर से बाहर पढ़ने के लिए जाते हैं तब लड़कियां लड़कों की तुलना में जल्दी सामंजस्य बैठा लेती है। हो सकता है इसके सामाजिक कारण भी हो, लेकिन एक बात यह भी है कि बहुत सारे मामलों में लड़कियां ज्यादा लचीली होती है और दूसरे घर के छोटे-मोटे कामों में मां का हाथ बंटाते-बंटाते वह कब आत्मविश्वास पा लेती है, इसका उन्हें खुद भी ज्ञान नहीं होता है।

अपने बच्चों को बाहरी दुनिया में रहने के लिए प्रशिक्षण दें। कभी अपने घर के आंगन में अपने बच्चों को उड़ना सिखाती चिड़िया को देखें तो आपको एहसास होगा कि उड़ने की कला उन्हें प्रकृति से मिली जरूर है, लेकिन कौशल उन्हें खुद ही हासिल करना होता है। देखें आप अपने बच्चे को कैसे आत्मविश्वासी और आत्म-निर्भर बना सकते हैं।

उन्हें एक कोना दें

चाहे जो परिस्थिति हो, आप अपने बच्चे को एक ऐसा कोना जरूर उपलब्ध कराएं, जिसे वह स्वयं व्यवस्थित करें। याद करें स्कूलों में बच्चों को दिया जाना वाला लॉकर। इसी तरह एक ड्रॉवर या एक लॉकर उसे जरूर दें, जहां वह अपनी चीजें व्यवस्थित कर रख सकें। इससे उसमें जिम्मेदारी का भाव भी आएगा और निर्णय करने की क्षमता का विकास भी होगा। जब वह उसे अपनी तरह से व्यवस्थित कर पाएगा तो उसमें आत्मविश्वास भी आएगा।

छोटे-छोटे निर्णय करने दें

अपने बच्चे को छोटे-छोटे निर्णय स्वयं करने दें। जैसे अपने दोस्त की बर्थडे पार्टी में वह क्या पहन कर जाना चाहता है? या फिर डिनर के लिए जाते हुए वह किस तरह के कपड़े पहनना चाहता है? या रेस्टोरेंट में उसे स्वयं अपना ऑर्डर देने के लिए कहें। आइसक्रीम का कौन-सा फ्लैवर या किस तरह का पित्जा वह खाना चाहता है, इसका निर्णय उसे स्वयं करने दें।

अपने रिश्ते उसे ही निभाने दें

यदि उसके दोस्त का जन्मदिन है या वह अपने दोस्त को किसी खास मौके पर पार्टी देना चाहता है या गिफ्ट देना चाहता है तो उसे खुद ही निर्णय करने दें। यदि वह आपसे राय मांगे तो उसे सुझाव दें। उसके समक्ष विकल्प रखें, उसे निर्णय न सुनाएं। उससे पूछे कि उसके दोस्त की रूचि क्या करने में है? उसी हिसाब से वह उसे गिफ्ट दें, लेकिन यह न बताएं कि उसे क्या गिफ्ट दे!

घर के छोटे-छोटे काम करने के लिए कहें

भारतीय घरों में अक्सर घर के कामों को लड़कियों के हिस्से में माना जाता है। ऐसे में अक्सर हम लड़कों को इससे अलग रखते हैं। लेकिन अब चूंकि लड़कों को भी अलग-अलग वजहों से घर से बाहर जाना पड़ता है, इसलिए उन्हें भी घर के काम करना आना चाहिए। इससे घर से बाहर एडजस्ट करने में उन्हें असुविधा नहीं होगी। खासतौर पर चाय बनाना, नाश्ता बना पाना और हां अपने कपड़ों को खुद ही धोना अपने बच्चे को जरूर सिखाएं।

अपनी समस्याओं को उन्हें ही हल करने दें

भाई-बहनों के बीच के झगड़े हो या फिर दोस्तों के बीच हुए विवाद…बच्चे को अपनी समस्याओं से खुद ही लड़ने को कहें। स्कूल के कार्यक्रम में भाग के लिए डांस की तैयारी करनी हो या फिर कॉस्ट्यूम अरेंज करना हो, बच्चों को मार्गदर्शन तो दें, लेकिन उसका काम आप न करें। इस तरह की छोटी-छोटी चीजें करके आप बच्चे को भविष्य के लिए तैयार कर सकती हैं। आखिर उसे आपके घर की छत से बाहर जाकर अपने लिए जमीन तलाशनी है और दुनिया बनानी है। अपनी छाया से अलग करके ही आप उसे विकसित होने का अवसर देंगी, ये न सिर्फ आपके लिए बल्कि स्वयं बच्चे के लिए भी अच्छा होगा।

 

शुभजिता

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