इंसान का निराशाजनक स्थितियों से घिर जाना उसके पूरे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। उस पर यदि ऐसी स्थितियों को ठीक से समझा न जाए या इन्हें इलाज करवाने की बजाय नजरअंदाज किया जाए तो तकलीफ और भी बढ़ सकती है। खासतौर पर मानसिक उलझनों को समझने में अक्सर लोग ऐसा ही रवैया अपनाते हैं। डिप्रेशन या अवसाद भी इसी श्रेणी में आता है। जानिए कुछ मिथक और कुछ तथ्य इसी संदर्भ में।
व्यस्तता तो सबसे अच्छा इलाज है
हर केस में नहीं। अक्सर लोग यह समझते हैं और राय भी देते हैं कि डिप्रेशन होने पर खुद को काम में सिर से पैर तक व्यस्त कर लेना बेहतर उपाय है। यह बात केवल डिप्रेशन के माइल्ड केसेस में कुछ हद तक मददगार हो सकती है लेकिन गंभीर या गहन डिप्रेशन के मामलों में यह उल्टा असर भी कर सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार बहुत ज्यादा काम करने लगना क्लीनिकल डिप्रेशन का लक्षण भी हो सकता है और ऐसे में मरीज के और भी निराशा में डूबते चले जाने की आशंका हो सकती है। खासतौर पर इस तकलीफ से पीड़ित पुरुषों में यह लक्षण देखा जाता है।
यह तो मन का वहम है
यह बात सबसे ज्यादा भारतीय परिवेश पर लागू होती है। हमारे यहां मानसिक उलझनों को लेकर हमेशा टालने वाला रवैया अपनाया जाता है और इन तकलीफों के इलाज को लेकर चुप्पी साध ली जाती है। मानसिक समस्याओं को बीमारी की श्रेणी में मानने और उसका इलाज करवाने वाले लोगों की संख्या उंगली पर गिनने लायक है। जबकि ठीक किसी अन्य बीमारी या तकलीफ की तरह ही डिप्रेशन के पीड़ित को भी दवाइयों और इलाज की आवश्यकता होती है। ब्रेन की स्कैनिंग में डिप्रेशन स्पष्ट दिखाई देता है। नर्व्स तक सिगनल्स ले जाने वाले ब्रेन के केमिकल्स असंतुलित हो जाते हैं। यह मन का वहम नहीं एक बीमारी है।
पुरुष अवसादग्रस्त नहीं होते
एक बहुत बड़ी भ्रान्ति जो दुनियाभर में लोगों के दिमाग में रहती है, लेकिन असल में डिप्रेशन का स्त्री-पुरुष से कोई लेना-देना नहीं होता। दोनों ही इसके शिकार हो सकते हैं। हां, चूंकि आदमी अपनी भावनाएं खुलकर प्रकट नहीं कर पाते, अत: उनमें डिप्रेशन के लक्षण गुस्से, चिड़चिड़ाहट, रेस्टलेस होने आदि के रूप में सामने आते हैं।
अवसाद के पीड़ित बहुत रोते हैं
यह भी हर केस के साथ जरूरी लक्षण नहीं होता। डिप्रेशन के पीड़ित कई लोग न तो रोते हैं न ही और कोई स्पष्ट लक्षण दर्शाते हैं। बल्कि वे स्थितियों को लेकर ब्लैंक हो जाते हैं और खुद को भीतर ही भीतर दूसरों पर बोझ समझकर जीने लगते हैं लेकिन सामने कुछ नहीं आने देते।
डिप्रेशन बढ़ती उम्र के कारण आता है
अगर ऐसा होता तो पूरी दुनिया में ढेर सारे टीनएजर और युवा इस तकलीफ से पीड़ित न होते। यह समस्या किसी भी उम्र के व्यक्ति को चपेट में ले सकती है। यह फैमिली हिस्ट्री में भी हो सकता है लेकिन सही इलाज, सकारात्मक माहौल, अच्छे दोस्तों या परिवार से संवाद, एक्सरसाइज और पोषक खान-पान और खुद पर विश्वास से लड़ाई जीती जा सकती है।
That insight solves the probelm. Thanks!