कोलकाता : भारत सहित समूचे विश्व में अतिवाद हावी होता जा रहा है और इसकी उत्पत्ति अनसुलझे सामाजिक, आर्थिक और दूसरी मौलिक समस्याओं से हुई हैं। ये बातें महात्मा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के प्रोफेसर अरुण त्रिपाठी ने कहीं। इस मौके पर पत्रकार स्नेहाशीष सूर ने पत्रकारिता में तथ्य और संतुलित नजरिया अपनाने की सलाह दी। दोनों विनय तरुण स्मृति समारोह में अतिवादों के दौर में पत्रकारिता और गांधीवाद विषय पर बोल रहे थे।
दस्तक की ओर से आयोजित समारोह में प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि हर युग, कालखंड में अतिवाद रहा है। सभ्यताओं के संघर्ष और वैश्वीकरण से दुुनिया में अतिवादी हावी होता रहा। भारत में इसके अलावा जाति संघर्ष और गरीबी ने अतिवाद को जन्म दिया है, जो इन दिनों हावी है। उन्होंने कहा कि अतिवाद एक रूप में खत्म होता है तो दूसरे नए रूप में पैदा हो जा रहा है। इन दिनों महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सहित दूसरे महापुरूषों के आदर्शों को अपनी तरह से व्याख्या कर नए नए अतिवाद को जन्म दिया जा रहा है। व्यक्तिगत और तर्कपूर्ण अभिव्यक्ति पर बंदिश लगाई जा रही है। सुजात बुखारी जैसे पत्रकार की हत्या कर दी गई। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता में उदारता खत्म होती जा रही है और उसकी जगह अतिवाद स्थान ले रहा है। ऐसे में वैकल्पिक रास्ता ढ़ंूढना पत्रकारों की जिम्मेदारी है और यह महात्मा गांधी के सत्याग्रह आदर्श के जरिए प्राप्त किया जा सकता है। वजह गांधी खुद में समवन्य के दौर हैं। इससे पहले पत्रकार स्नेहाशीष सूर ने कहा कि महात्मा गांधी सबसे बड़ा पत्रकार थे। उन्होंने सत्य और अङ्क्षहसा की राह पर चलने का उपदेश दिया था। भारतीय पत्रकारिता में भी अतिवाद प्रवेश कर गया है। समाचार चैनल और कुछ अखबार सिर्फ सरकार के खिलाफ लिखते हैं तो कुछ सिर्फ उसके पक्ष में लिखते हैं।
इस मौके पर भारतीय भाषा परिषद के निदेशक शंभुनाथ ने कहा कि लोकतंत्र में विरोध से संवाद खत्म करने से लोकतंत्र ध्वस्त हो जाता है और दुराचार व अतिवाद पैदा होता है। इन दिनों देश में अतिवाद और तर्कहिंसा का दौर चल रहा है। पत्रकारिता से उसका मूल चरित्र प्रतिवाद करना ही खत्म हो गया है। इसका अंत और सत्य की वापसी संभव है। इस मौके पर डॉ. सुधांशु कुमार की पुस्तक नारद कमीशन का विमोचन किया गया। कार्यक्रम का संचालन पत्रकार अखिलेश्वर पाण्डे ने किया और मौके पर दिवंगत पत्रकार विनय तरुण के सहपाठी उपस्थित थे।