Thursday, May 22, 2025
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सोच रहा मेरा मन

– रेखा शर्मा
ये सोच रहा था मेरा था मेरा मन
फिर मिल जाये
मुझको मेरा बचपन।
तब मेरा दिल भी कितना चंचल था।
‌हरदम होती थी जिस‌ दिल में हलचल
छिप छिप कर बातों पर हठ करना।
पल भर में रोना फिर हंस देना।
चांद सितारों के जो सपने।
वो अब लगते हैं हमको अपने
दिन भर खेलों में रहे मगन
जिन्दगी में जीने की सदा लगन।
बनता मन में सदा यही चित्र।
सबसे जुड़ जाये नाता पवित्र नाता। । ‌
फिर से मिल जाये वो दिन
ये सोच रहा है मेरा मन
फिर मिल जाए मुझको मेरा बचपन।
ये सोच रहा था मेरा मन

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।

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