प्रोसिनियम आर्ट सेन्टर में “आखिर रात ” नाटक का प्रदर्शन यू .एल टी.नाट्य संस्था ने किया । नाटककार योगराज के इस नाटक को एस. एम. राशिद ने निर्देशित किया । यह नाटक एक जेलर और कैदी के संबंधों पर आधारित है। मुल्क के एक बड़े समाजसेवी की हत्या के मामले में गिरफ्तार एक राजनीतिक कैदी है जिसे सुबह फांसी होने वाली है ,लेकिन जेल का मुलाजिम पादरी हमदर्दी रखता है और वह कैदी द्वारा की गयी हत्या के कारण जानना चाहता है लेकिन जेलर अपने वसुलो का पक्का है। उसके लिए मुल्क अहम है और वह कानून के अलावे कुछ नहीं सुनना चाहता और कानूनी फैसले पर अमल करता है ।।दोनों में एक बहस शुरु हो जाती है अंततः जेलर जो खु़द एक बेहतर नर्म दिल इंसान है पादरी की बात मान लेता है ।
अपने जोखिम पर उसे अपने पास बुलाता है और शुरू हो जाती हत्या की राज जानने की मुहिम ।कैदी पढ़ा लिखा राजनैतिक नेता रहा है, वह हत्या के राज को छिपाता चला जा रहा है लेकिन आखिर में जेलर के सामने अपना गुनाह स्वीकार लेता।फिर जेलर सवाल उठता है कि यह हत्या क्यों की गई ? पादरी की और हमदर्दी बढ़ जाती है। इधर जेलर कानून के आगे विवश पड़ जाता है । फिर बहस शूरू हो जाती है और मालूम होता है कि समाजसेवी नेता देश के साथ एक सौदेबाजी में शामिल था और इस छोटे नेता फंसाना चाहता था तभी इसने हत्या कर दी।
लेकिन इस केस की सरकारी और जांच हो रही थी और अचानक कोर्ट का फैसला आता है कि कैदी को रिहा कर दिया गया । पादरी की और हमदर्दी बढ़ जाती है ,और इधर जेलर कानून के आगे वह विवश पड़ जाता है ।
उर्दू भाषा में यह नाटक कहीं कहीं बहुत नाटकियता पैदा करता है। कलाकारों ने बहुत सहजता और काव्यात्मक और संवेदनशीलता से निभाया है । नाटक में जेलर का चरित्र बहुत द्वंद भरा है ,जिसे जीतेन्द्र सिहं ने बहुत खुबसूरती से निभाया है ,उनका संवादों को दृश्यबंध के साथ बोलना,चलना प्रभावित करता है ।पादरी के रूप में शकील अहमद और समाजसेवी की बेटी की भूमिका में सदफ़ अयूब ने भी अच्छा अभिनय किया । पुराने अभिनेता प्रताप जयसवाल ने भी कैदी के चरित्र में ठीक ठाक रहे। नाटक का संगीत और इफ्केट ठीक रहा लेकिन परिधान पर निर्देशक को ध्यान देना होगा ।
निर्देशक एस.एम.राशिद ने बिना तामझाम पैदा किये एक वर्तमान समाजिक राजनैतिक मुद्दे पर नाटक प्रस्तुत किया ।