शुभजिता के पाठकों तथा शुभचिन्तकों से

जब युद्ध होता है तो आप दोनों तरफ नहीं रह सकते। आपको पक्ष चुनना पड़ता है। हाल ही में होनहार अभिनेता सुशान्त सिंह राजपूत की मौत ने कई परदों को तार – तार कर दिया है। यह सिर्फ सुशान्त का प्रश्न नहीं है…यह हर उस प्रतिभाशाली युवा का प्रश्न है जो अपने सपने लेकर किसी अनजान शहर में जाता है…..उसे पूरा करने की कोशिश भी करता है मगर उसके आस – पास के स्थापित लोग उसका मनोबल गिराने का प्रयास करते हैं…जाहिर है कि जब पूरा शहर किसी एक युवा के पीछे पड़ता है, उसके खिलाफ साजिशें करता है, तब उसके लिए अकेले लड़ना कठिन हो जाता है…बॉलीवुड ही नहीं हर जगह बड़ी मछली, छोटी मछलियों को खाने की कोशिश करती है…यही होता आ रहा है।

अब सवाल यह है कि हमारा दायित्व क्या है? ये बहुत आसान है कि तटस्थता के नाम पर हम सब यथावत रहने दें….मगर क्या यह अन्याय को प्रोत्साहन देना नहीं है…क्या चढ़ते सूरज को सलाम करने वाली हमारी मानसिकता दोषी नहीं है जो इस सूरज की चकाचौंध में उसके तमाम अपराधों को अनदेखा करती आ रही है….हम नहीं जानते कि सच क्या है मगर सर्वविदित है कि लॉबी तो सक्रिय है…क्या हमने आउटसाइडर कहे जाने वाली इन प्रतिभाओं को अपना सहयोग दिया होता तो स्थिति अलग नहीं होती…मगर हमें तो सफलता देखने की आदत है…यह सही है कि बहिष्कार हो रहा है…होना भी चाहिए…मगर क्या फिर से इनकी चमचमाती रोशनी हमारी आँखों पर परदा नहीं डालेगी, इसकी क्या गारण्टी है…सवाल यह है कि हम अपने बच्चों को किस तरह का भविष्य देना चाहते हैं और दे क्या रहे हैं…क्यों उम्मीद की जाए कि हमारे बच्चों को काजल की कोठरी में सहारा मिलेगा जहाँ जाकर सब काले हो जाते हैं।

अगर हालात बदलने हैं न फिर ऐसी प्रतिभाओं को सहारा दीजिए…अपने बच्चों को मत कहिए कि वह किसी शाहरुख, सलमान की नकल करे…अश्लील गीतों पर फूहड़ तरीके से ठुमके न लगाए…उसे कुछ मौलिक करवाइए..कुछ ऐसा कि वह इन सबसे आगे बढ़ जाए…जो उपेक्षा के अन्धेरे में सितारे हैं, उनको खोज निकालिए….चमकाइए..और सफलता के आकाश में टाँग दीजिए…उनको फॉलो कीजिए…समर्थन करिए…उनकी फिल्में…उनके नाटक…उनका संगीत…उनकी कला को अपना समर्थन दीजिए।

वह क्या है न चढ़ते सूरज को सलाम सब करते तो हैं…मगर यह नहीं जानते कि जब सूरज आकाश पर चढ़ जाए तो उसके ढलने का समय नजदीक होता है…मगर डूबते सूरज को सलाम करने का मतलब है कि वह आज नहीं तो कल…देर से ही सही…उगेगा जरूर…तो सवाल यह है कि पक्ष लेना तो जरूरी है तो हम भी आज पक्ष ले रहे हैं…हमको नहीं पता कि आपका कितना सहयोग मिलेगा…मिलेगा भी या नहीं…मगर सहयोग पाने के लिए समझौते तो नहीं हो सकते न….अब देखिए न…मैथिली ने बॉलीवुड कवर छोड़ दिया। जरा सोचिए तो उस छोटी सी बच्ची में कितनी हिम्मत है….तो
अब एक छोटा सा कदम अपना भी
छोटी ही सही पर शुभजिता में बॉलीवुड गैंग की कोई प्रोमोशनल खबर नहीं जाएगी। हम उनका प्रचार नहीं करेंगे।  कम से कम तब तक, जब ये सोच नहीं बदलती, समानता नहीं आती..यह पक्षपात दूर नहीं होता। हाँ, बीमारी और मौत की बात अलग है क्योंकि मानवता भी तो नहीं छोड़नी। स्कूप हम वैसे भी नहीं डालते।
वो जिनको आउटसाइडर कहते हैं और देश के तमाम संघर्षरत कलाकारों, फिल्मों, नाटक,संगीत, कला इन सबका स्वागत है।

तो किसी, खान, कपूर, चोपड़ा या स्टार किड की खबर आप नहीं देखेंगे

कला और हिन्दी का मतलब मुंबई नहीं होता
कोई प्रोफेशनलीज्म आत्मा की आवाज से, जमीर से बड़ा नहीं होता
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अगला सुपर स्टार कोई आउट साइडर होगा, और बिहारी होगा क्योंकि कड़वा सत्य है कि आज के युवा बिहार और बिहारी शब्द से परहेज करने लगे हैं…वह हर जगह अपमानित और उपेक्षित हो रहा है मगर भरोसा है और आप सब साथ रहे तो यह होगा भी…..

#सुशांत#

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(असुविधा के लिए खेद है)

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