Wednesday, April 23, 2025
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वसुंधरा

कविता कोठारी

शत-शत नमन तुमको, हे वसुंधरा।
तुमसे ही हैं ये जीव सारे ओ धरा।
तुमने ही जीवनदान है सबको दिया।
सुख-भाग सबको बाँटती हो ओ धरा।
सुख और दुख समरूप से हो झेेलती।
उर में छिपा लेती हो निज दुख ओ धरा।
सबको तुम्हीं हो बाँटती अमृत-सुधा,
पर मिला तुमको गरल-विष ओ धरा।
उफ़ न करती तुम रही हँसती सदा।
जग ने कहाँ समझा है तुमको ओ धरा।

शुभजिता

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