नयी दिल्ली : गम्भीर अपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे व्यक्तियों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध के लिए दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सुनवाई शुरू हो गई। कोर्ट ने टिप्पणी की कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था में अपराधीकरण का प्रवेश नहीं होना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अधिकारों का बंटवारा करने के सिद्धांत का हवाला दिया और कहा कि अदालतों को लक्ष्मण रेखा नहीं लांघनी चाहिए और कानून बनाने के संसद के अधिकार के दायरे में नहीं जाना चाहिए। संविधान पीठ ने कहा, यह लक्ष्मण रेखा उस सीमा तक है कि हम कानून घोषित करते हैं। हमें कानून नहीं बनाने हैं, यह संसद का अधिकार क्षेत्र है।
केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि यह विषय पूरी तरह संसद के अधिकार क्षेत्र का है और यह एक अवधारणा है कि दोषी ठहराए जाने तक व्यक्ति को निर्दोष माना जाता है। इस पर पीठ ने मंत्रियों द्वारा ली जाने वाली शपथ से संबंधित सांविधान के प्रावधान का हवाला दिया और जानना चाहा कि क्या हत्या के आरोप का सामना करने वाला संविधान के प्रति निष्ठा बनाए रखने की शपथ ले सकता है।
वेणुगोपाल ने कहा, शपथ में ऐसा कुछ नहीं है जो यह सिद्ध कर सके कि आपराधिक मामले का सामना कर रहा व्यक्ति संविधान के प्रति निष्ठा नहीं रखेगा और इतना ही नहीं, संविधान में निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के प्रावधान हैं और दोषी साबित होने तक एक व्यक्ति को निर्दोष माना जाता है।
इससे पहले हाल ही में गैरसरकारी संगठन पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी ने दावा किया कि 2014 में संसद में 34 प्रतिशत सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि वाले थे और यह पूरी तरह असंभव है कि संसद राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए कोई कानून बनाएगी। भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय ने भी चुनाव सुधारों और राजनीति को अपराधीकरण और सांप्रदायीकरण से मुक्त करने का निर्देश देने के आग्रह के एक याचिका दायर कर रखी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि राजनीति के अपराधीकरण के मुद्दे पर शीर्ष अदालत को ही विचार करना चाहिए।