मप्र के दुबड़ी गाँव ने दी गरीबी को मात, लौटाएंगे बीपीएल कार्ड

श्योपुर : कुपोषण का गढ़ कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले का यह गांव छह साल पहले तक गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले बीपीएल कार्डधारियों का गांव था। 74 आदिवासी परिवारों के पास रोजगार का कोई साधन नहीं था। जिस दिन मजदूरी न मिलती, चूल्हा न जलता। जो भी थोड़ी बहुत जमीन और जेवर थे, गिरवी रखे हुए थे। गांव की सूरत अब बदल चुकी है। अब हर परिवार लखपति है और सरकार को बीपीएल कार्ड लौटाने जा रहा है। श्योपुर जिले के आदिवासी विकासखंड कराहल का दुबड़ी गांव इस बदलाव का श्रेय गांव की महिलाओं के स्वावलंबन को देता है। आदिवासियों ने गिरवी रखी जमीन और जेवर मुक्त करा लिए हैं। यह करिश्मा गांव की महिलाओं ने स्वसहायता समूहों से जुड़कर दिखाया। पूरे जिले में सिर्फ दुबड़ी गांव ही ऐसा है, जहां शतप्रतिशत महिलाएं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा गठित स्वसहायता समूहों की सदस्य हैं। समूहों से लोन लेकर महिलाओं ने खेती-बाड़ी, पशुपालन से लेकर लघु उद्योग शुरू किए।
अब स्थिति यह है कि पूरा गांव विकास की राह पकड़ चुका है। जिन घरों में खाने के लिए अनाज जुटाना मुश्किल था, वहां जीवन स्तर सुधर चुका है। घरों में बाइक, टीवी, फ्रिज जैसे संसाधन मौजूद हैं। इस कहानी की सबसे अहम और प्रेरणाप्रद बात, जो ग्रामीण भारत के बदलाव का संकेत देती है, जो ग्राम्य विकास की राह प्रशस्त करती है, वह यह कि दुबड़ी गांव के सभी परिवार अब सरकार को अपना बीपीएल कार्ड लौटाने जा रहे हैं। सरकार का यह कार्ड खाद्य सुरक्षा योजना, स्वास्थ्य सुविधाओं सहित अन्य जीवनोपयोगी सरकारी सुविधाओं का लाभ सुनिश्चित करता है।
गरीबी को मात देने वाली तीन कहानियां
1. बिजली को बनाया आय का जरिया : सुकनी आदिवासी ने बजरंग स्वसहायता समूह की सदस्यता ली और 15 हजार रुपये का कर्ज लेकर सोलर सिस्टम लगाया। पूरा गांव बिजली विहीन था, इसलिए उसने 100 रुपये महीने में 40 घरों को एक-एक सीएफएल का कनेक्शन दिया।
2. गिरवी रखी जमीन छुड़ाई : कालीबाई आदिवासी के पास 12 बीघा जमीन थी, जो 10 रुपये सैकड़ा के ब्याज पर गिरवी रखी थी। 11 साल से जो भी कमाते, साहूकार को दे देते। केवल ब्याज चुकता होता, मूल राशि जस की तस रहती। इसके बाद कालीबाई बैरागी स्वसहायता समूह से जुड़ी। समूह से 20 हजार का कर्ज लेकर साहूकार से जमीन मुक्त कराई।
3. गांव की सबसे उन्नत किसान बनीं : बेस्सी बाई की 15 बीघा जमीन खाद-बीज के लिए भी पैसे न होने के कारण सालों से बंजर पड़ी थी। कई बार गांव से आटा मांगकर रोटियां बनाती थी। बेस्सी भी समूह से जुड़ी। 15 हजार रुपये का लोन लिया। कृषि विभाग ने खेत में बोर कराया। आज बेस्सी गांव की सबसे उन्नत किसान है। खेती में नए प्रयोग करती है।

(साभार – नयी दुनिया में प्रकाशित हरिओम गौड़ की खबर)

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