भोपाल : कभी प्रदेश की भाजपा सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में शामिल रही राम वन गमन पथ विकास योजना भले ही सियासी भंवर में उलझकर जमीनी हकीकत न बन पाई हो, लेकिन सरकारी फाइलों में यह योजना आज भी जिंदा है। संस्कृति विभाग के बजट में न सिर्फ इसका जिक्र है, बल्कि इसके लिए एक हजार रुपए का टोकन बजट भी आवंटित है। यह योजना भले ही सरकार के ठंडे बस्ते में चली गई है, लेकिन चुनाव के पहले कांग्रेस ने इसे हवा देकर मुद्दे को फिर गर्मा दिया है।
मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ होते ही भाजपा ने राम के नाम पर सियासी दांव खेलते हुए उन क्षेत्रों को सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की योजना बनाई थी, जहां से होकर भगवान राम वनवास की अवधि के दौरान गुजरे थे। इसे राम वन गमन पथ विकास योजना नाम दिया गया था। इस योजना पर सरकार ने विचार 2004 में किया था, लेकिन इसे अमली जामा पहनाने की घोषणा 2007 के आखिरी दिनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चित्रकूट में की थी।
यह वह समय था जब 2008 के विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद संस्कृति विभाग सक्रिय हुआ और रामकथा, साहित्य, पुरातत्व, भूगोल, हिन्दी और भूगर्भशास्त्र जैसे विषयों के विद्वजनों की एक बैठक बुलाकर चर्चा लंबी चर्चा की गई। इसके बाद शोध और सर्वेक्षण के लिए 11 विद्वानों की एक समिति गठित की गई थी। इसका संयोजक अवधेश प्रसाद पांडे को बनाया गया था, जो पौराणिक शोधों से जुड़े हुए थे।
पौराणिक मान्यता है वनवास के दौरान भगवान राम ने माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ चित्रकूट के रास्ते वर्तमान मध्यप्रदेश में प्रवेश किया था। इसके बाद वे अमरकंट होते हुए नर्मदा पार करके रामेश्वरम की ओर चले गए थे। उनका भ्रमण पथ प्रदेश के वर्तमान रीवा, सतना, पन्ना, छतरपुर, शहडोल, अनूपपुर, विदिशा, उज्जैन आदि जिलों में है। राम वन गमन पथ योजना के तहत इन क्षेत्रों में सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि से विकास के साथ इनके लिए एक रूट तैयार करना भी था।
संस्कृति विभाग के बजट में आवंटित है राशिएक हजार रुपये का टोकन बजट शामिलदो सालों से दिया जा रहा है टोकन बजट
शासन द्वारा गठित शोध एवं सर्वेक्षण समिति ने मार्च 2009 से दिसंबर 2010 के बीच काम करके रिपोर्ट तैयार की और शासन को सौंप दी। उसके बाद क्या हुआ यह बता पाने की स्थिति में कोई नहीं है। राम वन गमन पथ विकास योजना भले ही ठंडे बस्ते में चली गई हो लेकिन सरकार की फाइलों में योजना आज भी जिंदा है। संस्कृति विभाग के बजट में योजना का जिक्र भी है और इसके लिए टोकन बजट भी आवंटित है। वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए पेश किए गए बजट में मांग संख्या 26 के तहत कला एवं संस्कृति संवर्द्धन शीर्ष के तहत जिन कामों का जिक्र किया गया है उनमें रामपथ विकास भी शामिल है। इस शीर्ष में मद संख्या- 5494–रामपथ विकास के लिए वित्तीय वर्ष 2018-19 में एक हजार रुपए का बजट आवंटन है। इसके पहले वित्तीय वर्ष 2017-18 में भी इसी मद में एक हजार रुपए के बजट का आवंटन किया गया है। इससे स्पष्ट है कि शासन स्तर पर राम पथ विकास का खाता अभी खुला हुआ है।
भाजपा सरकार और संगठन दोनों ने इस योजना को भुला दिया है। यहां तक कि कोई इस योजना का जिक्र तक नहीं करता है। पर्यटन विभाग ने चित्रकूट में जरूर कुछ काम उस समय कराए थे। लेकिन यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है कि पर्यटन विकास के तहत हुए थे या फिर रामपथ विकास के तहत कराए गए थे। संस्कृति विभाग ने समिति के गठन और उसकी रिपोर्ट आने तक जो सक्रियता दिखाई थी, वह नदारत हो गई। धीरे धीरे प्रदेश की जनता भी भूल गई कि रामभक्त सरकार ने ऐसी कोई योजना बनाई थी। लेकिन हाल में ही विधानसभा चुनाव को लेकर सक्रिय हुई कांग्रेस ने एक बार फिर इस मुद्दे को हवा दे दी है। कांग्रेस का दावा कि वह सत्ता में आने पर रामवन गमन पथ का विकास करेगी। कांग्रेस के दिग्गज नेता बहुत जल्द राम वन गमन पथ यात्रा भी शुरू करने जा रहे हैं। कांग्रेस की यह सियासी चाल शायद प्रदेश में फिर से राम वन गमन पथ के विकास की राह खोल दे।
योजना के तहत काफी काम हुआ हैराम वन गमन पथ विकास योजना के तहत संस्कृति विभाग को शोध और सर्वेक्षण का काम करना था, वह काम काफी पहले पूरा करके रिपोर्ट सरकार को दे दी गई है। वैसे योजना के तहत काफी काम हुआ है। पर्यटन विभाग ने इसके तहत चित्रकूट, मैहर, उज्जैन, अमरकंटक जैसे कई स्थानों पर काफी काम किया है। संस्कृति विभाग ने टोकन बजट का प्रावधान इसलिए किया गया है कि कभी कई और शोध कार्य होना है तो किया जा सकेगा। -मनोज श्रीवास्तव, अपर मुख्य सचिव, संस्कृति विभाग, मप्र शासन
(लेखिका भोपाल की वरिष्ठ पत्रकार हैं)