धोखे से सम्पत्ति बेचने पर भी खरीदार बेदखल नहीं होगा

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि ऐसे व्यक्ति द्वारा जो संपत्ति के मालिक नहीं है लेकिन भ्रमित करके संपत्ति दूसरे व्यक्ति को बेचता है तो ऐसे खरीदार को कानूनी संरक्षण मिलेगा। उसे संपत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकता। मामले के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में अपीलकर्ता ने 1990 में एक प्लॉट पर स्वामित्व का दावा दायर किया था। यह प्लॉट उसने जनवरी 1990 में प्रणब बोरा से बिना यह जाने खरीदा था कि यह भूमि लैंड सीलिंग में सरप्लस भूमि थी जिसे सरकार ने दो साल पहले सरप्लस घोषित किया था। हालांकि सितंबर 1990 में यह भूमि सीलिंग से मुक्त कर दी गई। इस पर खरीदार ने 1991 में भूमि अपने नाम दाखिल खारिज करवा ली। मगर चार साल के बाद विक्रेता संपत्ति में घुस आया और उस पर कब्जा कर लिया।
खरीदार ने कोर्ट में स्वामित्व घोषित करने का मुकदमा दायर किया। ट्रायल कोर्ट ने उसके पक्ष में आदेश दिया, लेकिन पहली अपीलीय अदालत ने इसे पलट दिया। अदालत ने कहा कि हस्तांतरण के समय विक्रेता भूमि का मालिक नहीं था, साथ ही खरीदार का भी संपत्ति पर धारा 53 ए के तहत अधिकार नहीं बनता, क्योंकि वह सरकारी भूमि थी। इस फैसले को हाईकोर्ट ने भी सही माना और पुष्टि कर दी। मामला सुप्रीम कोर्ट में आया और कोर्ट ने उसका दावा स्वीकार कर लिया। जस्टिस एल नागेश्वर राव और एमआर शाह की पीठ ने फैसले में कहा कि संपत्ति हस्तांतरण एक्ट की धारा 43 कहती है कि जहां कोई व्यक्ति धोखाधड़ी से या गलती से कोई जमीन बेचता है और उसकी कीमत ले लेता है तो यह हस्तांतरण सही माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हस्तांतरण के समय भूमि पर विक्रेता का अधिकार त्रुटिपूर्ण था या उसका कोई टाइटल ही नहीं था, लेकिन बाद में वह उसका मालिक या टाइटल होल्डर बन जाता है तो ऐसा हस्तांतरण वैध होगा। ऐसी हालत में विक्रेता को यह अधिकार नहीं होगा कि वह भूमि के हस्तांतरण / बिक्री पर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि कानून ऐसे व्यक्ति को, जो जमीन को अपना बता के बेच चुका है, मुकदमा करने से रोकता है, वह यह नहीं कह सकता कि पूर्व का हस्तांतरण उस पर बाध्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को अपनी गलती का फायदा उठाने का अधिकार नहीं है।

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