कोलकाता : भारतीय भाषा परिषद में ‘मीडिया और जन-पहरेदारी’ विषय सेमिनार आयोजित हुआ। छपते-छपते और ताजा टीवी के चेयरमैन विश्वंभर नेवर ने कहा कि लेखकों, पत्रकारों, कवियों और विचारकों को निराशाजनक बातें नहीं करनी चाहिए। धन से अखबार नहीं निकलता। संकल्प से निकलता है। आज बड़े-बड़े अखबार घरानों से निकलने वाली पत्रिकाएं बंद हो गई हैं। अंग्रेजी अखबारों के लिए चिंता का विषय है क्योंकि उनका प्रसार घट रहा है। हिंदी के अखबारों की प्रसार संख्या लगातार बढ़ रही है।
इस मौके पर प्रभात खबर के संपादक तारकेश्वर मिश्र ने कहा कि यह सच है कि मीडिया में अपंगता आ गई है। अब मीडिया लोकतंत्र का चौथा खंभा उस अर्थ में नहीं रहा जो अस्सी के दशक तक कहा जाता था। उन्होंने कहा कि चारा घोटाला और निजी अस्पतालों में मरीजों को लूटने की खबर हमारे अखबार ने खूब छापा लेकिन क्या हुआ? लूट अब भी जारी है। जरूरत है तंत्र को बदलने की। आम आदमी जो मीडिया से अपेक्षाएँ करता है वह पूरा नहीं हो पा रहा है। वह मीडिया आम आदमी की क्या रक्षा करेगा जो खुद ही कमजोर है। अखबारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है।
विद्यासागर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संजय जायसवाल ने कहा कि जन-पहरेदारी के लिए हमें जन के साथ खड़ा होना पड़ेगा। पूंजी निवेश के कारण अखबारों का चरित्र बदल गया है। इलेक्ट्रानिक मीडिया से तो अब कोई उम्मीद ही नहीं है लेकिन प्रिंट मीडिया से अब भी उम्मीद बची हुई है। अखबार के मालिक व्यापारी के रूप में खड़े हो जाएंगे तो फिर जन पहरेदारी कैसे होगी। तटस्थ हो कर समाचार/विचार लिखने का समय लद गया है। लेखक राजीव पांडेय ने कहा कि अब मनुष्य मनुष्य नहीं उपभोक्ता बन गया है। अगर विज्ञापन ज्यादा और समाचार कम हो रहा है तो फिर अखबारों की कमजोर स्थिति क्यों होनी चाहिए।
इसके बाद पत्रकारिता के छात्र-छात्राओं ने उपस्थित वक्ताओं से प्रश्न किए जिनका उन्होंने विस्तार से उत्तर दिया। भारतीय भाषा परिषद के निदेशक और इस कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ.शंभुनाथ ने कहा कि विद्यार्थियों ने प्रश्न कर यह जताया कि उनके भीतर अनेक जिज्ञासाएं हैं और यही सजगता का परिचायक है। प्रश्न है तभी अखबार भी है। लोकतंत्र के चौथे खंभे के बाद एक पांचवां खंभा भी आ गया है और यह खंभा है मैनेजमेंट। हर चीज मैनेज कर दी जा रही है। आम आदमी की वाणी बाजार छीन रहा है। विकास की गति जहां भी कम होगी वहां राजनीतिक खबरें ज्यादा होंगी। अब बौद्धिक किलेबंदी हो रही है जिसे मीडिया को ही तोड़ना होगा।
अपने स्वागत भाषण में भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ कुसुम खेमानी ने कहा कि जन- पहरेदारी का निर्वाह या दायित्व मीडिया की है तो जनता की भी है। हम यह न कहें कि मीडिया बिकाऊ हो गई है क्योंकि ऐसा कह कर हम परोक्ष रूप उंगली अपने ऊपर ही उठाते हैं।
विषय प्रवर्तन करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कोलकाता केंद्र, भारतीय भाषा परिषद में शैक्षिक समन्वयक विनय बिहारी सिंह ने कहा कि पत्रकारों की हत्याएं हो रही हैं और केंद्र सरकार झूठी खबरों के खिलाफ अध्यादेश लाना चाहती है जो तानाशाही का प्रतीक है। राजतंत्र यदि इस तरह का अध्यादेश लाता है तो वह निरंकुशता की स्थापना कर रहा है। यह अत्यंत विकट स्थिति है और इस पर गौर करने की जरूरत है। आखिर क्यों अखबारों पर उंगली उठाई जाती है और क्यों कहा जाता है कि वे पेड न्यूज छाप रहे हैं? इस कार्यक्रम का संचालन प्रो.पीयूषकांत राय ने किया और धन्यवाद ज्ञापन भारतीय भाषा परिषद के मंत्री नंदलाल शाह ने किया।