स्त्रियाँ हैं मगर उनके पास संचालन का अधिकार नहीं है

कोलकाता ः हमारे समाज में स्त्रियाँ हैं मगर उनके पास संचालन का अधिकार नहीं है। मंदिरों में देवी बनाकर उनको पूजा जाता है, व्रत और उपवास भी वह अधिक करती हैं मगर धर्म के संचालन का अधिकार उनके पास नहीं है। राजनीति और आर्थिक क्षेत्रों में उनकी संख्या बढ़ी है मगर निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी अब भी नहीं है इसलिए आपको स्त्रियों की दशा सुधारनी है तो पहले धर्म, राजनीति और आर्थिक क्षेत्रों में उनको संचालन और निर्णय का अधिकार दीजिए। कलकत्ता विश्‍वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा स्त्री साहित्य और उसके विभिन्न सन्दर्भो को समेटते हुए विशेष व्याख्यानमाला को संबोेधित करते हुए विभाग के पूर्व प्रोफेसर तथा वरिष्ठ आलोचक प्रो. जगदीश्‍वर चतुर्वेदी ने उक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि सेबी के निर्देश के बावजूद आज भी कई कम्पनियों में महिलाओं की भागीदारी नहीं बढ़ी है। स्त्री जितना संचालन करेगी, उतनी ताकतवर बनेगी। उसे समानता, लोकतंत्र और न्याय के सन्दर्भों में देखना जरूरी है मगर उसे लोकतंत्र तक जाने ही नहीं दिया जाता। अराजनीतिक होने की सीमा को तोड़ना जरूरी है। इसके पूर्व व्याख्यानमाला के पहले दिन स्त्री साहित्य पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दी साहित्य में ×स्त्री के प्रश्‍नों और उसकी समस्याओं पर सबसे पहले आधुनिक काल में जाकर विचार हुआ। बड़े लेखक स्त्री के रोटी जैसे बड़े प्रश्‍नों पर बात नहीं करते, उनके लिए स्त्री की सबसे बड़ी समस्या अवैध संबंध ही हैं। स्त्री साहित्य का परिवेश किताबों से नहीं जीवन से आता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल भी गहन परिचय के बावजूद बंग महिला पर विशेष बात नहीं करते और न ही रामविलास शर्मा जैसे आलोचकों ने स्त्री के प्रश्‍नों पर बहुत कुछ लिखा। उन्होंने इस सन्दर्भ में राधा मोहन गोकुल का उल्लेख करते हुए कहा कि स्त्री के सन्दर्भों में उनको पढ़ा जाना चाहिए। स्वागत भाषण हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. राजश्री शुक्ला ने दिया। दोनों सत्रों में विभाग के प्रोफेसर रामआह्लाद चौधरी तथा असिस्टेंट प्रोफेसर रामप्रवेश रजक समेत अतिथि तथा विद्यार्थी उपस्थित थे।

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