ताकतवर देशों से भारत वसूलेगा 7 लाख करोड़ रुपये!

कहा-आपके कारण बढ़ा हमारा खर्च, भरें हर्जाना
नयी दिल्ली । दुनिया के ​विकसित और ताकतवर देश जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज का हवाला देकर विकासशील देशों पर ये दबाव बनाते रहे हैं कि भारत और चीन जैसे देश कोयले का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इस बार भारत ने ताकतवर देशों को आईना दिखाया है। भारत ने जर्मनी के बोन शहर में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित कॉन्फ्रेंस में साफ कह दिया है कि विकसित देशों में रहने वाली दुनिया की 10% आबादी 52% कार्बन छोड़ने के लिए जिम्मेदार है।
प्राकृतिक आपदा से निपटने में हर साल लगती है बड़ी राशि
दुनिया की प्रतिष्ठित साइंस जर्नल ‘द लैंसेंट’ के मुताबिक अकेले अमेरिका 40% कार्बन छोड़ता है। इन्हीं वजहों से दुनियाभर को क्लाइमेट चेंज, हीटवेव, बाढ़ और सूखे का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे हालात से निपटने के लिए भारत में हर साल करीब 7 लाख करोड़ रुपए खर्च होते हैं। अब इस खर्च की भरपाई की मांग भारत ने रईस देशों से की है।
कार्बन उत्सर्जन के लिए विकसित देश कसूरवार
6 जून से 16 जून तक जर्मनी के बोन शहर में क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस आयोजित हुई। इसमें भारत ने अमीर देशों को आईना दिखाया है कि वे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करते हैं और कोयले के उपयोग के लिए हमें कसूरवार ठहराते हैं। दरअसल, यह सच भी है क्योंकि भारत में हर साल भीषण गर्मी की वजह से 83 हजार लोगों की मौत होती है। वहीं ठंड से हर साल 6.50 लाख लोग ठिठुरकर मर जाते हैं। वहीं बाढ़, अकाल, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं की वजह और क्लाइमेट चेंज के कारण भारत में हर साल 50 लाख लोगों को पलायन करना पड़ता है।
क्लाइमेट चेंज के लिए जिम्मेदार देश करें भरपाई
मौसम की ऐसी ही भीषण परिस्थितियों की मार झेल रहे भारत के लोगों का इसमें कोई दोष नहीं है। भारत ने जर्मनी के बोन शहर में हुई क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस में इन सबके लिए अमीर देशों को जिम्मेदार ठहराया है और इसके लिए होने वाले खर्च की भरपाई करने को कहा है। भारत का इसी बात पर जोर रहा कि विकसित देशों की वजह से दुनिया में गर्मी बढ़ी, सूखा और अकाल के मामले बढ़े। इसके लिए लिए भी ये ही देश जिम्मेदार हैं, इसलिए अब आपको इसकी भरपाई भी करनी होगी।

13 साल पहले कोपेनहेगन समिट में किया था वादा
भारत ने कहा कि कार्बन की समस्या को खत्म करने के और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए विकसित देशों का यह पैसा विकासशील देशों के लिए मददगार साबित होगा। दरअसल,विकसित देशों ने 2009 की कोपनहेगन समिट में भारत जैसे विकासशील देशों को जुर्माना के तौर पर 2020 तक सालाना 7.80 लाख करोड़ रुपए देने का वादा किया था। इस फंड का इस्तेमाल विकासशील देशों के कार्बन उत्सर्जन को कम करने में किया जाना था, लेकिन विकसित देश अपने वादे से मुकर गए, इसलिए ऐसा नहीं हो सका।

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