रायपुर. राजनांदगांव के कुर्रूभाठ गांव में रविवार को आयोजित सभा में पीएम मोदी ने 104 साल की कुंवर बाई के पांव छूकर आशीर्वाद लिया। कुंवर ने पीएम के स्वच्छता मिशन से प्रेरित होकर बकरियां बेचकर शौचालय बनवाया था। पीएम नें मंच पर उन्हें सम्मानित किया और मंच पर मिनटों तक उनकी तारीफ करते रहे। कुंवर के बारे में पीएम ने क्या कहा…
– मोदी ने जनसभा में कुंवर बाई का जिक्र करते हुए कहा, “यहां 104 वर्ष की मां कुंवर बाई आशीर्वाद पाने का सौभाग्य मिला।”
– जो लोग अपने आप को नौजवान मानते हैं, वे तय करें कि उनकी सोच भी जवान है क्या ?
– एक सौ चार वर्ष की मां कुंवर बाई न टीवी देखती हैं और न ही पढ़ी-लिखी हैं, लेकिन उन्हें पता चला के देश के प्रधानमंत्री लोगों को घरों में शौचालय बनवाने के लिए कहते हैं।
– उन्होंने बकरी पालन की राशि से अपने घर में शौचालय बनवाया और गांव वालों को भी शौचालय बनाने के लिए मजबूर किया।
– कुंवर बाई जैसी बुजुर्ग महिला का यह विचार पूरे देश में तेजी से आ रहे बदलाव का प्रतीक है। मैं उन्हें प्रणाम करता हूं।
– मोदी ने मीडिया से आव्हान किया कि वे भले ही उनका भाषण न दिखाए, लेकिन कुंवर बाई के इस प्रेरणादायक कार्य को जरूर जन-जन तक पहुंचाएं।
‘स्वच्छता छोटी बात नहीं‘
– मोदी ने दो आदिवासी बहुल विकासखंडों-अम्बागढ़ चौकी और छुरिया को खुले में शौच मुक्त विकासखंड घोषित करते हुए दोनों विकासखंडों के निवासियों को बधाई दी।
– पीएम ने कहा कि इन विकासखंडों के सेवा भावी नौजवानों, माताओं, बहनों ने काम कर दिखाया है, जो सामाजिक जागरूकता का परिचायक है।
– “स्वच्छता छोटी बात नहीं है। शैचाालयों का निर्माण बीमारियों से मुक्ति के लिए जरूरी है, स्वच्छता के लिए जरूरी है, स्वच्छ भारत के लिए जरूरी है।”
– “देश को खुले में शौच की सदियों पुरानी आदत से मुक्ति की जरूरत है।”
– “हमारी माताओं और बहनों का सबसे बड़ा सम्मान यही होगा कि उन्हें हम शौचालय बनवाकर दें।”
पढ़िए, कुंवर की कहानी उन्हीं की जुबानी…
– हम जहां रहते हैं, वहां आप लोग आएंगे, तो देखेंगे कि जिंदगी कितनी मुश्किल है। गंगरेल के बीच टापू की तरह है हमारा बरारी गांव। एक बारिश हो, तो जिंदगी दुनिया से कट गई सी लगती है।
– पचास साल हो गए मुझे यहां रहते। हम लोगों ने कभी टॉयलेट की जरूरत तो महसूस नहीं की, लेकिन जब घर में बहुएं आईं तो ठीक नहीं लगा। घर के पैसे की जरूरत बकरियों से पूरी होती है। मेरे पास आठ-दस बकरियां थीं।
– बहुओं, पोतियों और नातिनों को अच्छी जिंदगी और अच्छी सेहत देने बकरियां बेच दीं। उससे मिले 22 हजार रुपयों से दो टॉयलेट बनाए। जब कोई घर में आता, तो उन्हें बताती। देखो, मेरे घर के लोग अब बाहर नहीं जाते, तुम भी बनवाओ।
– सब लोग पैसों से काबिल नहीं थे, इसलिए टॉयलेट बनाने दूसरों की जो मदद हो सकी, वो भी की। अब हमारे गांव में हर घर में टॉयलेट है।