Thursday, February 13, 2025
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कोविड से जुड़े शोध के बारे में लिखने में भी पुरुष आगे, सिर्फ 34% महिलाओं को मिला मौका

कोरोना वायरस के असर से बीते कुछ महीनों के दौरान रिसर्च पेपर लिखने वाली महिलाओं की संख्या में भारी कमी आई है। एक स्टडी के मुताबिक सिर्फ एक तिहाई महिलाओं ने रिसर्च पेपर लिखे। यहां तक कि सीनियर मानी जाने वाली महिला लेखिकाएँ भी इस काम से दूर रहीं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं द्वारा रिसर्च पेपर लिखने की कम दर यह सवाल पैदा करती है कि कोराेना वायरस के प्रति उनकी गंभीरता कहीं कम तो नहीं है? क्या इसका प्रभाव महिला और पुरुष दोनों पर अलग-अलग हुआ है?
रिसर्च पेपर के मुख्य लेखक अना केटेरिना पीहो गोम्स कहते हैं ये चिंता की विषय है कि इस महामारी के बीच महिलाओं के रिसर्च पेपर की संख्या काफी कम है। रिसर्च प्रोफेशनल न्यूज में यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के रिसर्चर महिलाओं की मौजूदगी के बिना रिसर्च पेपर लिखे जाने में निश्चित तौर से कमी मानते हैं।
बीएमजे ग्लोबल हेल्थ की रिसर्चर स्टडी के अनुसार इस साल जनवरी से अब तक कोविड-19 पर 1,445 पेपर्स पर शोधार्थियों ने अध्ययन किया । इनमें से सिर्फ 34% महिलाओं ने रिसर्च पेपर लिखे। इसकी वजह जानने के लिए पिन्हो गोम्स और उनकी टीम ने कुछ फैक्टर्स रखें। वे कहते हैं कोविड-19 एक ऐसा विषय है जिसके बारे में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों का अध्ययन अधिक है।
परिवार का बोझ बढ़ा है
इसके अलावा लॉकडाउन के दौरान महिलाओं पर बच्चों, परिवार और घर का बोझ हर हाल में बढ़ा है। घर की तमाम जिम्मेदारी निभाते हुए महिलाओं को रिसर्च पेपर लिखने का समय कम मिला। रिसर्च की ये राय है कि इन कारणों ने महिलाओं की कार्यक्षमता को पूरी तरह प्रभावित किया है।
डाटा बेस अधिक रहता है
साइंटिफिक कंवर्सेशन और रिसर्च के नजरिये से देखें तो महिलाओं के लिखे रिसर्च पेपर को यूनिक मानकर खास महत्व दिया जाता है। महिलाओं की उपस्थिति की वजह से रिसर्च का डाटा बेस हाई रहता है। कोविड-19 के संदर्भ में बात की जाए तो इसकी वजह से हुए सामाजिक और आर्थिक बदलावों को जानने के लिए रिसर्च पेपर में महिलाओं की भारीदारी भी पुरुषों की तरह ही जरूरी है।
समाज को फायदा होगा
वैसे भी रिसर्च पेपर लिखने के लिए महिला शोधार्थियों को अधिक प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है। ये बात महामारी के दौरान जितनी जल्दी महिलाएं समझ लें, उतना अच्छा है। उनके योगदान का फायदा सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि पूरे समाज को होगा।

(साभार – दैनिक भास्कर)

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