प्रस्तुति – निखिता पांडेय
एक ऐसी आरती जिसका हिन्दू शास्त्रों में कोई उल्लेख नहीं मिलता लेकिन फिर भी यह आरती इतनी प्रचलित और प्रसिद्ध है कि यह आरती हिन्दू धर्म के हर मंदिरों में गायी जाती है। इस आरती के रचयिता पंडित श्रद्धाराम शर्मा (फिल्लौरी) का आज पुण्य स्मरण दिवस 24 जून 1881 को था। श्रद्धारामजी की लाहौर में मृत्यु हो गई थी। उनका जन्म 30 सितम्बर, 1837 में पंजाब के जालंधर जिले में लुधियाना के पास एक गाँव फिल्लौरी (फुल्लौर) में हुआ था। उनका विवाह एक सिक्ख महिला महताब कौर के साथ हुआ था। ‘ओम जय जगदीश हरे’ के रचयिता : 1870 में 32 वर्ष की उम्र में पंडित श्रद्धाराम शर्मा ने ‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती की रचना की थी। आज इस आरती के 150 वर्ष भी पूर्ण हो गए हैं।
पिता ने की थी भविष्यवाणी : उनके पिता जयदयालु स्वयं एक अच्छे ज्योतिषी और धार्मिक प्रवृत्ति के थे। पिता ने अपने पुत्र की कुंडली पढ़कर कहा था कि ये बालक अपनी कम आयु में ही जीवनी में चमत्कारी प्रभाव वाले कार्य करेगा। पंडितजी ने 1844 में मात्र सात वर्ष की उम्र में ही गुरुमुखी लिपि सीख ली थी। दस साल की उम्र में संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी, पर्शियन तथा ज्योतिष आदि की पढ़ाई शुरू की और कुछ ही वर्षों में वे इन सभी विषयों में पारंगत हो गए।
सामाजिक कार्य : पंडितजी ने साहित्य और भाषा की सेवा के साथ ही धर्म और समाज के लिए भी बहुत कार्य किए। उन्होंने अंग्रेजों खिलाफ भी लड़ाई लड़ी और समाजिक कुप्रथाओं के खिलाफ लोगों को जगाया। उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह औ स्त्री पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद किया। जगह-जगह पर उनको धार्मिक और सामाजिक विषयों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता था। उस दौरान तब हजारों लोग उनको सुनने आते थे।
(साभार – वेब दुनिया)