हर दिल के चहेते थे अटल जी

वरिष्ठ पत्रकार सीताराम अग्रवाल की कलम से
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री परम श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी का आज (25 दिसम्बर  2022 ) जन्मदिन है। भले ही आज वे सशरीर हमारे बीच मौजूद नहीं हैं, पर उनका व्यक्तित्व व कृतित्व सदैव हमे देदीप्यमान करता रहेगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि सिर्फ भारत में ही नहीं विदेशों में भी वे काफी लोकप्रिय हैं। हर पार्टी  के नेता उनका सम्मान करते थे। एक बार कांग्रेस ने कहा था- वाजपेयी जी बहुत अच्छे नेता हैं, पर गलत पार्टी के साथ हैं। वे हर व्यक्ति के दिल में निवास करते थे और आज भी लोग उन्हें बड़ी श्रद्धा के साथ याद करते है। वे वास्तविक अर्थ में जननेता थे। पत्रकार से राजनेता बने भावुक ह्रदय कवि अटल जी के बारे में मैं नीचे एक बहुत पुराना संस्मरण दे रहा हूं, जो उनके महान व्यक्तित्व व सदाशयता की एक झलक है।
संस्मरण-
करीब 58 वर्ष पहले की बात है। तिथि मुझे ठीक से याद नहीं। मैं वाजपेयी जी के भाषणों की भाषा-शैली का कायल था। राजनीतिक समझ उतनी नहीं थी। उनका एक कार्यक्रम सेन्ट्रल एवेन्यू स्थित महाजाति सदन सभागार में धा। जब एक मित्र (उस समय वे जनसंघ के समर्थक थे ) ने मुझसे कार्यक्रम में चलने का आग्रह किया तो मैं तत्काल तैयार हो गया। पास ही में खड़े एक और मित्र ( वे कांग्रेस समर्थक थे ) ने भी जाने की उत्सुकता दिखाई। उनके पास गाड़ी भी थी। बस हम लोग कमरहट्टी (कोलकाता-58) स्थित अपने-अपने घरों से रवाना हो गए। इस बीच और एक मित्र साथ हो लिए। हम चारों करीब 11 किलोमीटर का फासला तय कर महाजाति सदन पहुंचे। हम चारों किशोरों ने रास्ते में ही तय कर लिया था कि कार्यक्रम के बाद यदि स॔भव हुआ तो वाजपेयी जी से मिला जायगा।
कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद हम बाहर उनके निकलने का इंतजार करते रहे। उन दिनों सुरक्षा का कोई खास ताम-झाम नहीं था। हमने अपनी कार उनकी गाड़ी के थोड़ा पीछे लगा दी। हालांकि श्री वाजपेयी जी महाजाति सदन के सामने ही श्री घनश्याम बेरीवाल के मकान में ही रुके थे। पर उस समय हमें इस बारे मे कोई जानकारी नहीं थी। ट्रैफिक के कारण हमारी कार थोड़ी पीछे रह गयी। खैर थोड़ी खोज-बीन के बाद हम श्री बेरीवाल जी के मकान के सामने पहुंचे। हमने अंदाजा लगाया कि वाजपेयी जी इसी मकान में ही रुके हैं। थोड़ी सी झिझक के बाद हम लोगों ने मकान में प्रवेश किया। दोपहर का समय था। आश्चर्य की बात धी कि कहीं कोई नहीं मिला, जिससे हम पूछते। पर वाजपेयी जी से मिलने के अपने इरादे पर हम अडिग थे। हिम्मत करके दूसरा तल्ला (फर्स्ट फ्लोर) पार कर तीसरे तल्ले पर पहुंचे। अभी हम लोग चौथे तल्ले पर जाने की सोच ही रहे थे कि ऊपर से एक सज्जन उतरते नजर आये। उन्होंने पूछा-कहां जायेंगे। एक मित्र ने कहा-वाजपेयी जी से मिलने। उन्होंने कहा- नही मिल सकते। अभी वे आराम कर रहे हैं। थोड़ी देर तक अनुनय-विनय होती रही। कहा गया- हम लोग बड़ी दूर से आये हैं। उन्हें परेशान नहीं करेंगे। सिर्फ़ दूर से देख कर चले जायेंगे। पर उनके  कानों पर जूं तक नहीं  रेंगी। लम्बे तथा अच्छी कद-काठी वाले ये सज्जन  किसी भी तरह हमें जाने नहीं दे रहे थे। अब तक मैं चुपचाप था। वैसे भी चारों में मैं सबसे छोटा था। जब मैंने देखा कि अब हमें वापस जाना ही होगा, तो एक आखिरी कोशिश की। भाषण देने की आदत स्कूल में वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के दौरान बन चुकी थी। मैंने ऊंची आवाज में कहना शुरू किया- आप जैसे लोग ही अनावश्यक रूप से लोकप्रिय नेताओं व जनता के बीच दीवार बन कर खड़े हो जाते हैं। इससे न सिर्फ नेता की छवि  खराब होती है, बल्कि पार्टी भी कमज़ोर होती है। और न जाने क्या-क्या। इस बीच ऊपर से आवाज आती है-इन बालकों को ऊपर आने दो। मैंने पीछे घूम कर देखा तो स्वयं वाजपेयी जी चौथे तल्ले के बरामदे में रेलिंग पर झुके हुए बोल रहे थे। और वे मेरी ओर ही देख रहे थे। शायद वे बहुत देर से हमारी बातें सुन रहे थे। मैं तो खुशी के मारे ऐसा उछला,  मानो कारू का खजाना मिल गया हो। सभी का एक ही हाल था।  अब उस सज्जन को हमें पहुंचाने के सिवा चारा नहीं  था। इसके बाद वाजपेयी जी ने पिता जैसा स्नेह देते हुए हमारा परिचय पूछा। प्यार भरी बातें की। बातों का सिलसिला चलता ही रहा। इस बीच एक डाक्टर साहब आये और उन्हें समय का ध्यान दिलाते हुए दवा  लेने का आग्रह किया। वाजपेयी जी ने एक तरह से झिड़कते हुये कहा-तुम्हे दवा की पड़ी है।  देखो ये बच्चे कितनी दूर से मुझसे मिलने आये है। वे बेचारे चले गये। कहां तो हम सिर्फ दो- तीन मिनट के लिए मिलने आये थे, वहां करीब आधा घंटा हो चला था। पता नहीं ये सिलसिला और कितनी देर चलता, पर कई बुलावा आने के बाद इच्छा न रहते हुए भी मैं उठ खड़ा हुआ और चरण स्पर्श करते हुए जाने की आज्ञा मांगी। और हम सभी चल पड़े। मुझे ऐसा आभास हो रहा था कि वे अभी और बतरस के मूड में थे। शायद राजनीतिक बातों से इतर हम लोगों के साथ वार्तालाप उन्हें आनन्दित कर रहा था। ऐसे हैं कवि  ह्रदय हमारे-आपके सबके वाजपेयी जी। वैसे बाद में पत्रकार के रूप में  मैंने उनकी अनगिनत सभाएं, कार्यक्रम वगैरह कवर किये हैं। प्रेस क्लब,कोलकाता में प्रधानमंत्री के रूप में उनकी प्रेस कांफ्रेंस भी कवर की है। ये सब स॔स्मरण फिर कभी।
 पुन: सादर नमन –
कोलकाता 25 दिसम्बर 2023

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