Tuesday, January 28, 2025
बिगगापोन हेतु सम्पर्क करे - [email protected]

हमारी आज़ादी भी मुकम्मल हो जाएगी, अगर

डॉ. आनंद श्रीवास्तव

आज़ादी, कहने को 78 साल गुजर गये हैं, हमारे देशभक्तों के द्वारा दिए गए बलिदान और उस बलिदान के बदले मिली आज़ादी को‌ । हमने आंखों में स्वतंत्रता के सपने भरकर जीवन के एक पूरे पहलू को काट लिया है । स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व की भीत पर खड़ी आज़ादी का मूल मंत्र हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा और सुरक्षा भरा आत्मविश्वास रहा है। आज वर्ष 2024 में ऐसा लगता है कि आज़ादी का पुनर्मूल्यांकन जरूरी है। हम वास्तव में आज़ाद हुए हैं भी या नहीं? मानवीय मूल्यों की सुरक्षा क्या सचमुच बची हुई है? वर्षों से हमने सुना है कि हम स्वतंत्र हैं पर क्यों महसूस नहीं कर पाते हैं हमलोग इस स्वतंत्रता को? दलतंत्र और नेता तंत्र ने आज़ादी को एजेंडा बना लिया है। आज हर कार्यक्रम के केंद्र में दलगत प्रचार सम्मिलित है पर केंद्र में राष्ट्रहित की अपेक्षा दलगत हित ही सर्वोपरि है। राजनेता जो आज़ादी दिखाते हैं, यह उनकी दृष्टि है, हमने जब स्वयं को केन्द्र में रखकर सोचा तो पता चला हम ऐसे दौर में जी रहे हैं जहां अभिव्यक्ति कीआज़ादी भी सम्भव नहीं है, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है । इतिहास गवाह है कि अभिव्यक्ति पर मौन के पहरे पहले भी बैठाएं गए हैं। आज़ादी के 78 साल बाद भारत की जनता को क्या मिला है ? बेरोज़गारी,असुरक्षा, तिरस्कार, अपमान, शोषण, उत्पीड़न ने ही अपने पैर पसारा है। धर्म निरपेक्ष होकर भी हम धर्म के नाम पर लड़ते हैं, बहुभाषी समाज का हिस्सा होकर भी भाषा -विवाद में फंसे हैं, नौकरशाही ने हमें गुलाम बना रखा है। प्रगतिशीलता के नाम पर हम और अधिक नंगे और अधिक खोख़ले ही हुए हैं। हम विवाद कर सकते हैं पर समाधान नहीं निकाल सकते क्योंकि समाधान हमारे अधिकार से परे है। युवा पीढ़ी शिक्षित बेरोज़गारी की शिकार हैं । उनको दया की भीख दिखाकर राजनीति के दलदल में खींचने की कोशिश की जाती है और वे फंसते भी हैं। यही वजह है कि एक मानसिक बेचैनी और अवसाद से घिरी युवा पीढ़ी न्याय और अन्याय के बीच का फर्क भूल जाती हैं। हमारे नेता सभाओं से कहते हैं कि हम नागरिकों को मुफ़्त राशन दे रहे हैं, प्रश्न तो यह है कि अगर हमारा देश प्रगति करता तो जनता इतनी सफल होती कि उसे मुफ़्त की जरूरत ही ना पड़ती। हम ए. आई तकनीक की बात करते हैं और राशन मुफ़्त में चाहिए। वोटबैंक की राजनीति ऐसी है कि हम अपने मौलिक अधिकारों को बेच देते हैं चंद रुपये की लालसा (जो नेताओं के द्वारा दान के रूप में दी जाती है) ने हमारे विवेक को निगल लिया है। हम उचित-अनुचित तक पहुंचना ही नहीं चाहते। हत्या, अपराध और तो और जहां बलात्कार पर भी राजनीति होती है, वहां हम किस आज़ादी की बात करते  हैं । चोरी दलाली ने सबकुछ अपने नाम कर लिया है। बलात्कार पर भी बोली लगती है, दलगत राजनीति  के लिए बलात्कार भी एजेंडा बनाया जाता है । क्या ऐसे असुरक्षित समाज की परिकल्पना के साथ हमलोग बड़े हुए थे? नहीं हमने तो सुरक्षा भाव को ही जीवन का अभिन्न अंग माना था। ब्रिटिश साम्राज्यवादी शक्ति ने भारत में कब़्जा जरूर किया था पर उनसे चुनौती देने के क्रम में हमने अपने विवेक और विचारों को जगाया था।हम शिक्षित और संगठित बने थे, इतने भटकाव के शिकार तो हम तब नहीं थे जब भारत की जनता को आज़ादी का मूल मंत्र तक पता नहीं था। आज़ादी की लड़ाई में जाति, धर्म और भाषा की दीवार नहीं थी पर आज़ाद मुल्क पर इस विभाजन का पहरा है। मुक्ति की आकांक्षा सबमें है पर पंख काटकर उड़ान भरने की कला नहीं सिखाईं जा सकती,कबीले से राज्य और राज्य से राष्ट्र बने कई वर्ष बीत गए पर आज भी बल सिद्धांत ज्यों का त्यों हैं, ताकतवर से लोहा लेने का साहस किसी में नहीं हैं, हम सिर्फ़ मोमबत्ती जलाकर और सोशल मीडिया पर ब्लैक डे मनाकर प्रतिवाद कर अपने को संतुष्ट कर लेते हैं। मेरा सवाल उन नेताओं से है जो चुनाव के दौरान दरवाज़े – दरवाज़े घूमकर वोट मांगते वक्त हमारी सुरक्षा का दावा करते हैं और जब कोई आपराधिक घटना घटजाती है तब उनकी भूमिका अपनी कुर्सी बचाने में लग जाती है। हरबार एक परिवार किसी अपने को खोता है और दलतंत्र उसमें अपने मुनाफे का गुणा-भाग लेकर बैठ जाता है। सोचनीय प्रश्न है कि जिस समाज में चारों ओर बौद्धिक विवाद हो रहे हैं, हाशिए और केंद्र की बात की जा रही है वहीं इतना असुरक्षित महसूस करना क्या हमें आज़ाद घोषित करता है? क्या सचमुच हम आज़ाद हैं? पता चलेगा एक खोखला स्वांग भरते हुए हम आज भी अस्तित्व की लड़ाई  लड़ रहे हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन निजी स्वार्थ की वेदी पर हर दिन बलि चढ़कर हो रहा है। शर्मसार मानवता मुंह खोलने से भी डरती है । फिर भी हम आज़ाद हैं। आत्महंता की स्थिति में हैं फिर भी हम आज़ाद हैं। पदाधिकारी नेतागण चौंकने की नहीं सोचने की जरूरत है आपके दिखाए सपने पर आस्था रखकर हम ऐसे दोराहे पर खड़े हैं जहां से ना आगे बढ़ पा रहे हैं और ना ही पीछे लौट पा रहे हैं। लोकतंत्र काअर्थ ही सुरक्षा है पर असुरक्षा और भय ने जनता को आतंक से भर दिया है । क्या ऐसी त्रासद स्थिति हमारे जनप्रतिनिधियों को नहीं दिखती । याद रहे आपके हाथों में ही आम जनता का भविष्य है, आसान नहीं भावनाओं को ठगना, आंदोलन, हड़ताल और नारे तो लगते रहेंगे पर जिस दिन हम आत्मसफल और सुरक्षित हो जाएंगे उसी दिन हमारी आज़ादी भी मुकम्मल हो जाएगी। हमारे छाता बनने के लिए ही आपको चुना गया है पर इतने छेद के साथ अगर आप हमारे सिर पर विराजेंगे तो बरसात ही हर बूंद हमें भींगाते रहेगी। समता तब भी लहुलुहान थी आज भी लहुलुहान है। हमने सिर्फ़ बंटवारे की राजनीति की है। कभी भाषा,कभी जाति,कभी धर्म के नाम पर टुकड़ों में बांटकर हमआज़ाद नहीं हो सकते।आज़ादी काअर्थ ही आत्मसुरक्षा के साथ आगे बढ़ना ।

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।

शुभजिताhttps://www.shubhjita.com/
शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।
Latest news
Related news