डॉ. साधना झा
आहत हुआ
भरी सभा में
याज्ञवल्क्य का अहम् जब
ब्रह्मवादिनी गार्गी के प्रश्नों से !
एक स्त्री से !
सहज नहीं होता पराजित होना कभी ।
फिर ?
बनाए गए नियम
गढ़े गए मिथक
देवी का !
धरती का !
त्यागमयी ममतामयी कल्याणी का ।
और ?
उलझकर रह गई वह
आचार संहिता के शब्द-जाल में !
पहचान खो गई उसकी
संस्कारों के मोह-पाश में !
टूट गए सारे उसके
रंगीन सपने सजे सुनहरे पंख ।
फिर ?
शुरू हुई स्त्री की
अंतहीन संघर्ष की गाथा !