सृजन की सकारात्मकता से भरे रहे 7 वर्ष
आपकी शुभजिता आज 7 साल की हो गयी । इस यात्रा के दौरान आप सभी का प्रेम मिला और प्रोत्साहन भी । शुभजिता एक प्रयास है जिसका आरम्भ 13 फरवरी 2016 को अपराजिता के रूप में हुआ । अपराजिता….माने कभी न हार..। यही तो मूल मंत्र है जीवन का….जो हार नहीं मानता..वह प्रयास करता है निरन्तर । हमने हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में वह अनछुआ, अनकहा पक्ष खोजने और उसे सहेजने का प्रयास किया है जिसके सिरे हाथों से जैसे फिसल रहे हैं । शुभजिता स्त्री की गरिमा और उसके संसार को उसकी सम्पूर्णता में स्वीकार करती है क्योंकि वह उसे आधी आबादी भर नहीं मानती क्योंकि अगर स्त्री आधी आबादी है तो यह उपनाम एवं उपाधि तो शेष दुनिया को मिलनी चाहिए । बात यह है कि जो सृष्टि को पूर्णता देती है, जो प्रकृति है, सृजन है, वह अधूरी तो हो ही नहीं सकती । इन दिनों शुभजिता के प्रतीक चिह्न में आप त्रिदेवियों को देख रहे होंगे..यही सृष्टि का सार है…सृजन केन्द्र है, समृद्धि साधन है और सर्जना शक्ति का लोककल्याण में उपयोग ही साध्य है..। हमने जब भी देखा तो पुराणों में देवियों को अलग देखा मगर वास्तविकता तो यह है कि तीनों एक दूसरे को पूर्ण करती हैं…सरस्वती का विवेक ही वैभव और शक्ति को संतुलित कर सृजनात्मक आधार देता है ।
हमने पत्रकारिता को प्रोपोगेंडा के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया और न ही कभी स्त्री को अबला या बेचारी समझकर प्रस्तुत किया । स्त्री को अगर समानता प्राप्त करनी है तो विक्टिम कार्ड खेलने से परहेज करना होगा और समान रूप से दायित्व वहन करना होगा..। कार्यक्षेत्र में भी स्त्री के रूप में अपने लिए सहूलियत खोजना हमारे विचार से सही नहीं है मगर अब भी इसकी आवश्यकता बनी हुई है क्योंकि स्त्री के कर्तव्य पालन में सहभागिता का चलन अब भी बहुत कम है ।
संरक्षणवादी दृष्टिकोण के साथ चलने वाला समाज अपने अहं की माया में फँसकर अपनी सृजनात्मकता का आधा ही उपयोग कर रहा है । समानता का प्रश्न जेंडर से अधिक योग्यता के आधार पर तय करने की जरूरत है और इसे निष्पक्ष भाव से करने के लिए समान अवसर देने में पूरी ईमानदारी से देने की जरूरत है । कई शिक्षित और समाज के प्रतिष्ठित लोग भी इस मामले में विफल हैं क्योंकि घर को घर की स्त्री ही सम्भालेगी की मानसिकता के वशीभूत होकर इन्होंने अपने घर और कार्यालय की स्त्रियों से आगे बढ़ने का अधिकार छीना है…सम्भवतः उनको खुद के पीछे छूट जाने का भय रहा हो मगर जो योग्य है…आगे बढ़ने का अधिकार उसे ईश्वर ने दिया है। परिवार, समाज, देश के विकास में योगदान करना उसका दायित्व है…आप अपनी महत्वाकांक्षा के लिए उसे रोकर पूरे देश को क्षति पहुँचा रहे हैं और राष्ट्रद्रोह हमारी दृष्टि में यही है ।
7 वर्षों की यात्रा में हम युवाओं से जुड़े…पुरुषों को समझने का प्रयास किया । देश की परम्परा..इतिहास और इसके समृद्ध संसार को समझने का प्रयास किया है और यह प्रयास चलता रहेगा । अपने सुझावों से, अपने योगदान से आपने शुभजिता को आगे बढ़ाया है । 5 लाख से अधिक लोग हमें देख चुके हैं, देख रहे हैं…बगैर किसी मार्केटिंग के, बगैर किसी तामझाम के आज शुभजिता यहाँ तक आ सकी है तो इसका श्रेय आप सभी को है…..हार्दिक अशेष आभार एवं प्रणाम ।
– सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया
संस्थापक एवं सम्पादक, शुभजिता