महानगर की संस्था साहित्यिकी की ओर से बुधवार की शाम भारतीय भाषा परिषद् सभागार में’साहित्यिकी’ पत्रिका के 25 वें अंक-‘सुलझे-अनसुलझे प्रसंग-(संपादक:सुषमा हंस,रेशमी पांडा मुखर्जी) की समीक्षा पर केंद्रित एक संगोष्ठी आयोजित की गयी।किरण सिपानी के स्वागत भाषण से गोष्ठी का समारंभ हुआ।संस्था द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित प्रत्रिका के प्रयास की सराहना करते हुए डॉ इतु सिंह ने कहा कि इस पत्रिका की सबसे बड़ी खासियत है कि इसे बिना पढ़े महसूस किया जा सकता है।उन्होंने कहा कि एक पृष्ठ में बात कहना बड़ी बात है-यह गृहणियों की विशेषता है।विविधवर्णी पत्रिका में राजनीति और व्यंग को भी स्थान मिलता तो बेहतर होता।
डॉ आशुतोष ने इस अनूठे प्रयास किसरहन करते हुE कहा कि 49 पन्नों की पत्रिका में कहीं भी बनावटीपन नहीं है,प्रमाणिकता है,अनुभवों का ताप है।कुछ रचनाओं के शिल्प और विषय की प्रशंसा करता हुए उन्होंने महत्वपूर्ण सुझाव दिए। सुषमा हंस ने संपादन के सन्दर्भ में अपने अनुभव,समस्याओं और सदस्याओं से मिले सहयोग पर अपना विस्तृत वक्तव्य रखा।अध्यक्षीय वक्तव्य में कुसुम जैन ने कहा कि संस्था’एकला चलो रे’ के सिद्धान्त में विश्वास नहीं रखती।मिलकर चलना-लिखना-पढ़ना हमारी ताकत है। संगोष्ठी का सञ्चालन विद्या भंडारी ने किया।