कोलकाता : साहित्य मानवीय मूल्यों को कट्टरता और बाजार संस्कृति से बचाने की जगह है। यह मानव जाति की अंतरनिर्भरता का दस्तावेज होता है। साहित्य अनुभव, भावना और कल्पनाओं की भूमि है। साहित्य बचा है तो मानवता के स्वप्न बचे हैं। आज भारतीय भाषा परिषद में आज कर्तृत्व समग्र सम्मान और युवा पुरस्कार से सम्मानित विद्वानों ने ‘मेरा जीवन मेरा लेखन’ पर चर्चा करते हुए उपर्युक्त विचार व्यक्त किए।
प्रसिद्ध असमिया कथाकार नगने सैकिया ने कहा कि मेरी रचनाएँ अपने से संवाद है। वे यथार्थ और कल्पना की मिली जुली उपज हैं। मुझे अपने देश से, अपनी मातृभाषा से प्रेम है। इसलिए मैं साहित्य रचना करता हूूँ। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार और साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कम्बर ने कहा कि मैंने परंपरा और मिथकों को नई अर्थभूमि पर व्यक्त किया है। मैंने आधुनिकतावाद के दबावों से मुक्त रहते हुए वस्तुतः देशज संस्कृति के प्रतीकों को व्यक्त किया है। मुझे स्थानीय संस्कृति से उतना ही प्रेम है जितना विश्व संस्कृति से। कुसुम अंसल ने कहा कि जीवन का दर्द ही साहित्य की मुख्य प्रेरणा है। बांग्ला की युवा कवयित्री कौशिकी दासगुप्ता ने कहा कि मेरा लेखन स्त्री की स्वतंत्रता और पहचान की तलाश है। हिंदी कथाकार शिवेंद्र ने कहा कि लेखक को विजेताओं की ओर से नहीं बल्कि उनके विरुद्ध बोलना पड़ता है। तेलुगु के कवि बंडारी राजकुमार ने अपनी एक तेलुगु कविता का पाठ किया।
अध्यक्षीय भाषण देते हुए परिषद के निदेशक शंभुनाथ ने कहा कि साहित्यकार समाज की सांस्कृतिक आंख होता है। यह साहित्य है जो हमें सपने देखना सिखाता है। लेखक कभी भी दुनिया के वर्तमान यथार्थ से संतुष्ट नहीं होता वह सीमारेखाओं को तोड़ते हुए हमेशा एक बेहतर दुनिया की खोज में रहता है। परिषद की अध्यक्ष डॉ.कुसुम खेमानी ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रोफेसर राजश्री शुक्ला ने संवाद सत्र का संचालन करते हुए कहा कि यह पुरस्कार समारोह भारतीय भाषाओं के बीच एक सेतु बंधन की तरह है।