निशा सिंह फैशन की दुनिया में धमाके से कदम रखने वाली अंतरराष्ट्रीय फैशन डिजाइनर हैं जिनके लिए फैशन मानवाधिकार सेवा का एक माध्यम है। दूसरों को रोजगार देने के लिए खुद फैशन डिजाइनिंग सीखी और लंदन जाकर लंदन फैशन वीक के फैशन स्काउट में अपना कलेक्शन दिखाने वाली और तारीफें बटोरने वाली महानगर की सबसे कम उम्र की और बंगाल की पहली डिजाइनर बनीं। अपराजिता ने निशा सिंह से खास मुलाकात की, पेश हैं प्रमुख अंश –
मैं डिजाइनर बनूँगी, ये कभी नहीं सोचा था
मैं हमेशा से सृजनात्मक थी मगर मैं डिजाइनर बनूँगी, ये कभी नहीं सोचा था। फाइन आर्ट्स करती थी और डिजाइनिंग करती थी। आई एन एफ डी में दाखिला लिया तो अपनी क्षमता का पता चला कि मैं कितना कुछ कर सकती थी। मुझे ये पता था कि कारीगरों से कपड़े बनवाकर बाजार में बिकवा सकती हूँ मगर इसके पहले तकनीकी जानकारी नहीं थी। पहली बार 4 सैम्पल बनवाये औरर 500 कुरते बनवाये थे जो हाथों हाथ बिक गये। मुझे जो भी लाभ मिलता है, वो सीधा कारीगरों तक जायेगा। फिर मुझे लगा कि इनके साथ काम करूँ तो अच्छा होगा।
दूसरों की मदद करने के लिए फैशन डिजाइनिंग सीखी
मानव अधिकारों के लिए काम करती हूँ और मेरा काम मेरे उद्देश्य में सहायक है। खासकर उपनगरीय इलाकों में फैली बेरोजगारी को कम करने के लिए मैं प्रशिक्षण देती हूँ और महिलाओं पर ध्यान अधिक रहता है। मैं फैशन की दुनिया में आई ही इसलिए ताकि मैं इन महिलाओं की मदद कर सकूँ जिससे वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। हावड़ा और उलूबेड़िया में काम करते समय मैंने देखा कि वहाँ के लोग काफी अच्छा काम कर रहे हैं मगर उनके पास रोजगार नहीं था। इनमें से कुछ बांग्लाभाषी थे और कुछ मुस्लिम थे। मैं मानवाधिकारों के लिए काम करती थी मगर कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा था। मुझे काम करना अच्छा लगता था तो मैंने इन लोगों के लिए यूनिट खोलीं मगर मशीनें चोरी हो जाती थीं। चाहकर भी कुछ नहीं कर पाती थी क्योंकि इन इलाकों में गरीबी बहुत थी। मैं रोजगार चाहती थी और इसके लिए जरूरी था कि खुद मुझे फैशन की समझ हो। तब तक फैशन की एबीसीडी भी मुझे नहीं आती थी मगर मुझे कुछ करना था इसलिए आई एन एफ डी से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया।
घर में सबसे सहयोग मिला
घर में तो मुझे सबसे सहयोग मिला। पति और मेरे परिवार ने भी बहुत साथ दिया। समय प्रबंधन एक दिक्कत गहै मगर हमें इन हालातों में रहकर ही काम करना है तो सबके सहयोग से हो जाता है।
भारतीय कला को लोकप्रिय बनाना चाहती हूँ
मैं भारतीय कारीगरी और पाश्चात्य कला का संगम लाना चाहती हूँ और भारतीय कला को लोकप्रिय बनाने का इरादा है। अपने पहले कलेक्शन में जिसे लंदन फैशन वीक में प्रदर्शित किया गया, मैंने बहुत कम कढ़ाई इस्तेमाल की थी। स्क्रीन और हैंड पेंटिंग के साथ काँथा और लेदर का इस्तेमाल किया जो आमतौर पर सर्दियों में हम इस्तेमाल करते हैं। भारतीय कला को सामने लाने के लिए क्यूरोसिटी नामक इस कलेक्शन में मैने रॉ सिल्क, ब्रोकेड भी इस्तेमाल किया और यह लोगों को पसन्द आय़ा। मैं लकड़ी को फैब्रिक की तरह इस्तेमाल करना चाहती हूँ। फैशन के माध्यम से लोगों की मदद करनी है इसलिए प्रशिक्षण कार्यशालाएँ आयोजित करती हूँ। निःशुल्क सिखाना चाहती हूँ।
सपने उम्र के मोहताज नहीं होते
मेरा मानना है कि सपने उम्र के मोहताज नहीं होते, बस आपको इनके लिए मेहनत करनी होंगे। अगर आप सपने देखतीं हैं तो उसे पूरा करने के लिए डटकर मेहनत करें, सफलता जरूर मिलेगी।