उच्च न्यायालयों में हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग की वकालत करते हुए संसद की एक समिति ने कहा है कि संविधान में इस संबंध में केंद्र को पर्याप्त अधिकार दिये गए हैं और इसके लिए न्यायपालिका के सम्पर्क की जरूरत नहीं है।
अभी देश में उच्चतम न्यायालय और 24 उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी में कार्यवाही होती है और आदेश भी अंग्रेजी में दिये जाते हैं।
केंद्र सरकार को कलकता, मद्रास, गुजरात, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक उच्च न्यायालयों में बंगाली, तमिल, गुजराती, हिन्दी और कन्नड़ के उपयोग के संबंध में प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं।
हालांकि इन सभी प्रस्तावों को 11 अक्तूबर 2012 को उच्चतम न्यायालय की पूर्ण पीठ ने खारिज कर दिया था।
विधि एवं कार्मिक विभाग पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि अंग्रेजी के अलावा अन्य अनुसूचित भाषा के उच्च न्यायालयों में उपयोग की अनुमति दी जा सकती है, अगर इस बारे में संबंधित राज्य सरकार मांग करती हैं।
संविधान के अनुच्छेद 348 का उल्लेख करते हुए समिति ने कहा कि न्यायपालिका के साथ विचार विमर्श की प्रक्रिया जरूरी नहीं है क्योंकि उच्च न्यायालयों में अनुसूचित भाषा के उपयोग के बारे में संवैधानिक प्रावधान में पूरी तरह से स्पष्ट हैं ।
समिति ने सरकार से इस बारे में जुलाई 2016 के मसौदा कैबिनेट नोट पर जल्द कोई निर्णय करने को कहा है जिसमें कहा गया है कि या तो 1965 में मंजूर कैबिनेट के विचार पर पुनर्विचार किया जाए या उसे जारी रखा जाए ।
21 मई 1965 को केंद्रीय मंत्रिमंडल में एक विचार को मंजूर किया गया था जिसके बाद किसी उच्च नयायालय में भाषा में बदलाव के बारे में न्यायपालिका से विचार विमर्श किया जाता है।