नयी दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संयुक्त परिवार की संपत्ति का बंटवारा सभी हिस्सेदारों की सहमति से ही किया जा सकता है। न्यायमूर्ति एस ए नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि बंटवारा उन हिस्सेदारों के कहने पर निरस्त किया जा सकता है जिनकी सहमति प्राप्त नहीं की गई हो। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट कानून है कि कर्ता/संयुक्त परिवार की संपत्ति का प्रबंधक केवल तीन स्थितियों में संयुक्त परिवार की संपत्ति का बंटवारा कर सकता है – कानूनी आवश्यकता, संपत्ति के लाभ के लिए, और परिवार के सभी हिस्सेदारों की सहमति से।
पीठ ने कहा, यह स्थापित कानून है कि जहां सभी हिस्सेदारों की सहमति से बंटवारा नहीं किया गया हो, यह उन हिस्सेदारों के कहने पर निरस्त हो सकता है जिनकी सहमति प्राप्त नहीं हुई है। शीर्ष अदालत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ एक अपील पर यह टिप्पणी की जिसमें एक व्यक्ति द्वारा बंटवारे और उसकी एक तिहाई संपत्ति के पृथक कब्जे के लिए अपने पिता तथा उसके द्वारा लाए गए एक व्यक्ति के खिलाफ दायर मुकदमे को खारिज कर दिया गया था।
न्यायालय ने कहा कि इस मामले में, दूसरे प्रतिवादी की ओर से यह स्वीकार किया गया है कि निपटान विलेख एक उपहार विलेख है जिसे पिता ने अपने पक्ष में ‘प्यार और स्नेह से’ निष्पादित किया था। इसने कहा यह अच्छी तरह से स्थापित है कि एक हिंदू पिता या हिंदू अविभाजित परिवार के किसी अन्य प्रबंध सदस्य के पास पैतृक संपत्ति का उपहार केवल ‘पवित्र उद्देश्य’ के लिए देने की शक्ति है और जिसे ‘पवित्र उद्देश्य’ शब्द से समझा जाता है वह है धर्मार्थ और/या धार्मिक उद्देश्य के लिए एक उपहार।
पीठ ने कहा इसलिए, प्यार और स्नेह से निष्पादित पैतृक संपत्ति के संबंध में उपहार का एक विलेख ‘पवित्र उद्देश्य’ शब्द के दायरे में नहीं आता है। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में उपहार विलेख किसी धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्य के लिए नहीं है। हमारा विचार है कि पहले प्रतिवादी द्वारा दूसरे प्रतिवादी के पक्ष में निष्पादित निपटान विलेख / उपहार विलेख को प्रथम अपीलीय अदालत और उच्च न्यायालय द्वारा सही रूप से अमान्य घोषित किया गया था।