राम रावण के युद्ध को सदियाँ बीत चुकी है पर रामायण की विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता क्योंकि अनेकों ऐसे साक्ष्य आज भी मौजूद है जो इस बात का प्रमाण है की किसी समय इस धरती पर रामराज्य मौजूद था। हाल ही में खोजकर्ताओं को कुछ ऐसे साक्ष्य मिले है जो रामायण काल की कथाओं की प्रमाणिकता पर मुहर लगते है। श्रीलंका के रामायण रिसर्च कमिटी द्वारा दी गई जानकारी को मानें तो अब तक हुए अनुसंधान में भगवान हनुमान के लंका में प्रवेश को लेकर उत्तर दिशा में द्वीप पर पाओं के निशान मिले हैं।
इस प्रोजेक्ट में उस स्थान की भी तलाश की गयी जहाँ पर राम रावण का महा युद्ध लड़ा गया था। आपको बता दें की श्रीलंका में आज भी उस स्थान को युद्धागनावा के नाम से जाना जाता है। वहीं माता सीता का हरण करने के बाद अशोक वाटिका वह जगह है, जहाँ पर रावण ने माता सीता को रखा था। बता दें की अब इस जगह को सीता एलिया के नाम से जाना जाता है।
इसके साथ ही कई ऐसी जगहों की खोज भी की गयी हैं जिनका भारतीय इतिहास में पौराणिक महत्व है। राम रावण के युद्ध स्थल के नजदीक एक ऐसा स्थान भी खोजै गया है जहाँ पर सीता माता का मंदिर है और एक झरना भी मिला है जिसके बारे में ये मान्यता है की जब रावण सीता माता का हरण करके ले जा रहा था तब सीता के आंसुओं से इस झरने की उत्पत्ति हुई है। इसके अलावा श्रीलंका में वेलीमड़ा नामक जगह पर दीवरूम्पोला मंदिर है जहाँ माता सीता ने अग्नि परीक्षा दी थी।
इस मंदिर को लेकर मान्यता है की जिस तरह इस जगह पर देवी सीता ने सच्चाई साबित की थी उसी तरह यहाँ पर लिया गया हर फैसला सहीं साबित होता है। आपको बता दें की भारत में ऐसी कई जगह हैं, जहां रामायण के साक्षी मिले हैं और इन जगहों को देवी तुल्य दर्जा भी दिया गया है। साथ ही कई ऐसे प्रमाण मिले है जो हिन्दू धर्म के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। बताया जा रहा है कि श्रीलंका के जंगलों में हनुमान जी की मौजूदगी के संकेत मिले हैं।
‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी खबर के मुताबिक श्रीलंका के जंगलों में कुछ ऐसे कबीलाई लोगों का पता चला है जिनसे मिलने हनुमान जी आते हैं। अखबार ने इन जनजातियों पर अध्ययन करने वाले आध्यात्मिक संगठन ‘सेतु’ के हवाले से यह सनसनीखेज खुलासा किया है। कहा गया है कि हनुमान जी इस साल हाल ही में इस जनजाति के लोगों से मिलने आए थे। इसके बाद वे 41 साल बाद यानी 2055 में आएंगे। इस जनजाति के लोगों को ‘मातंग’ नाम दिया गया है। इनकी तादाद काफी कम है और ये श्रीलंका के अन्य कबीलों से काफी अलग हैं। सेतु के मुताबिक इस कबीले का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है। हनुमान जी को वरदान मिला था कि उनकी कभी मृत्यु नहीं होगी यानी वे चिरंजीवी रहेंगे। भगवान राम के स्वर्ग सिधारने के बाद हनुमान जी अयोध्या से लौटकर दक्षिण भारत के जंगलों में लौट आए। उसके बाद उन्होंने फिर से समुद्र लांघा और श्रीलंका पहुंचे। उस समय हनुमान जी जब तक श्रीलंका के जंगलों में रहे, इस कबीले के लोगों ने उनकी सेवा की. हनुमान जी ने इस कबीले के लोगों को ब्रह्मज्ञान का बोध कराया। उन्होंने यह भी वादा किया कि वे हर 41 साल बाद इस कबीले की पीढियों को ब्रह्मज्ञान देने आएंगे। हनुमान जी जब इस कबीले के साथ रहते हैं, कबीले का मुखिया हर बातचीत और घटना को एक ‘लॉग बुक’ में दर्ज करता है। सेतु इस लॉग बुक का अध्ययन कर रहा है और इसका आधुनिक भाषाओं में अनुवाद करा रहा है। सेतु ने इस लॉग बुक का पहला चैप्टर अपनी वेबसाइट www.setu.asia पर पोस्ट किया है। इस चैप्टर के जरिये खुलासा हुआ है कि किस तरह हनुमान जी कुछ समय पहले श्रीलंका के इस जंगल में आए थे। 27 मई 2014 हनुमान जी का इस जंगल में बिताया आखिरी दिन था।
(साभार – पंजाब केसरी तथा आजतक)