शुभजिता को मेरी ओर से हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। मेरी स्वरचित कविता’ हे देवी! वर ऐसा देना’ प्रेषित कर रही हूँ। शुभजिता यूँ ही आगे उत्तरोत्तर अपने लक्ष्य को पूर्ण करती रहे। इसी आशा- विश्वास और उम्मीद से निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर हो। पुनः शुभकामनाएँ और बधाई –
वीणावादिनी पुस्तकधारिणी वासंती की देवी
गीत – संगीत – कला – संस्कार और संस्कृति की धूरी
हे देवी! वर देना ऐसा
सत्य और ईमान की घुट्टी पिला देना
देश की सोंधी मिट्टी से प्यार सिखा देना
युवाओं को सुमति – सुधर्म और उन्नति के पथ पर चलने देना
हर पल, हर दिन, नये रंगों से प्रतिदिन झोली भर देना
नई सोच, नए विचार और व्यवहार दे देना
हर बच्चे के अभिभावक को आदर और सम्मान दे देना
हे देवी! वर ऐसा देना
रिद्धि-सिद्धि और वृद्धि से भर पूर्णता देना
हर बालक – बूढ़े को अन्न सदैव ही देना
छाया रहे बड़ों की हरदम
बरगद के फैले पत्तों को सहलाते रहना
चिड़ियों के कलरव में वीणा के गीत सुनाना
छल – कपट – अत्याचार – हिंसा को मन से दूर भगाना
हे देवी! वर ऐसा देना
कण कण में देश प्रीत की गंगा ही बह जाए
हर युवा के कण्ठ कण्ठ में सरस्वती बस जाए
नव गति नव ताल छंद नव सब कुछ नया नया हो
हर भाषा के भावों में भारत उन्नत बन जाए
वाक् शक्ति की ही उपासना मानव की ऊर्जा है
चारों ओर दिशाओं में फैला है यही उजास
फेंक दूर तमस को ज्योति के बंधन में बांँध बस देना
हर मानव के मन में नैसर्गिक प्रवृत्ति के बीज बो देना
हे देवी! वर ऐसा देना
हे देवी! वर ऐसा देना