हुकूमत क्या है
एक खेल का नाम है
सियासत इस खेल की चाल
और हाकिम खिलाड़ी है
जो अपने विरोधियों के साथ खेलता है
अवाम तमाशाई हैं
इस खेल के
ऐसे तमाशाई
जो कभी खामोश रहते हैं
कभी सहमे हुए
कभी बेचैन
कभी जज़्बाती हो जाते हैं
लेकिन हाकिम जज्बाती नहीं होता
वो दिमाग से खेलता है
इस खेल में आते हैं कई पड़ाव
पहले पड़ाव में खेल की बाज़ी
खिलाड़ी के हाथ में होती है
खिलाड़ी अपने विरोधी को
देता है मौका चाल चलने का
उसे दौडाता है
भगाता है
और मारता है
दूसरे पडाव में
खेल का रोमांच ज़रा
खतरनाक मोड़ पे होता है
विरोधी के चौक्कने वार पर
खिलाड़ी होशियारी से ठिठकता है
फिर उसे खेलने का मौका देकर
कभी भागता है
कभी मार खाता है
कभी खुद को बचाता है
तीसरा पडाव होता है आख़िरी
जहाँ दोनों तरफ के खिलाड़ी
लगा देते हैं अपनी पूरी ताकत
जीत हासिल करने के लिए
जैसे चौगान का खिलाड़ी
घोड़े पे सवार अपनी छड़ी से
आंधी सी रफ़्तार लिए
गेंद को मारता हुआ
भागता है ऐसे सरपट
कि खेल की शक्ल
लगने लगती है खौफ़नाक
जैसे घुड़सवार गेंद छोड़
विरोधी की कटी गर्दन को
छड़ी से ठोकरे मार
भाग रहा हो बेतहाशा
अपनी सरहद की ओर…
ठीक उसी तरह
हुकुमत के खिलाड़ी
एक दूसरे की चालों को मात देते
लगा देते हैं अपनी पूरी ताक़त
अपने हिस्से की भीड़
अपने हिस्से का इतिहास
अपने हिस्से की गाथाएँ
अपने हिस्से के किसान
अपने हिस्से के नौजवान
और अपने हिस्से की तमाम रूहें
जीत मगर किसी एक की होती है
हवा में लहराते हों
जिसके उद्घोष
बजते हों ढोल जिसके
घडियाली आँसू के
बता सकता हो जो
कागज़ में गुल की खुशबू
बिना किसी आधार के
बना सकता हो जो महल
हवा को मुट्ठी में बंद करने का
कर सकता हो जो दावा
जीत का डंका उसी का बजता है
अतीत के गर्भ में
साँसे लेता भविष्य मगर
हार और जीत से परे
बिल्कुल आश्वस्त है
कि जानता है वो
अँधेरे और उजाले के बीच
जो इक पतली सी झिल्ली है
इंसानियत की नाल से ही जुडी है
इसलिए खेल में इंसानियत जीतेगी साथी
और यही भरोसा
ज़िन्दगी का इतिहास है
अतीत, वर्तमान और भविष्य है