सम्बन्धों का आधार विश्वास होता है परन्तु सम्बन्धों का महत्वपूर्ण आधार एक दूसरे के प्रति सम्मान भी होता है । सबसे आवश्यक यह जान लेना है कि एक दूसरे के प्रति सम्मान का आधार आयु नहीं होता, व्यक्ति, वर्ग और सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि नहीं होती बल्कि एक दूसरे के व्यक्तित्व का, चरित्र का सम्मान होता है । हम यह बात इसलिए कह रहे हैं कि श्रावण का महीना चल रहा है और यह शिव और शक्ति को समर्पित सबके लिए यह सम्भव नहीं होता और न ही यह सबके वश की बात है कि वह किसी को पूर्ण रूप से उपरोक्त आधारों को छोड़कर सम्मान दे । जब एक दूसरे के प्रति सम्मान और विश्वास समाप्त हो जाए तो यह उचित समय होता है कि दूरी बना ली जाए, थोड़ा समय दिया जाए, आत्ममंथन किया जाए और इस पर भी बात न बने तो आगे बढ़ जाया जाए ।
हम भारतीय परिवारों में संयुक्त परिवारों को महत्व अवश्य दिया गया है मगर उसका आधार प्रेम से अधिक सामाजिक बन्धन ही है । परिवारों में स्त्रियों की स्थिति एक आश्रित की होती है या उपेक्षिता की होती है । जो आश्रित रहकर परिवार की एकता के नाम पर अपने साथ होने वाले हर अन्याय को सहती जाए और हर अन्याय में सम्बन्ध निभाने के नाम पर खड़ी हो जाए…परिवार हो या समाज, जय -जयकार उसी की होती है, दूसरी तरफ उपेक्षिता वह है जो प्रश्न उठाती है, अपने अधिकारों की बात करती है और उसके लिए लड़ती है और हर तरफ से उसे त्याज्य समझा जाता है । कारण यह नहीं है कि उसके सवाल गलत हैं बल्कि कारण यह है कि आपके पास इन प्रश्नों के उत्तर ही नहीं है । आपको पीड़ित – प्रताड़ित, मौन रहने वाली घुट – घुटकर जीने वाली औरतें आदर्श लगती हैं मगर मुखर स्त्रियों से आप डरते हैं मगर आप सम्मान इनमें से किसी का नहीं करते , यही तथ्य है ।
इन दिनों सोशल मीडिया से लेकर पारम्परिक मीडिया तक, रील और मीम निर्माताओं तक ज्योति मौर्य – आलोक मौर्य का प्रकरण छाया है । सबने अपने – अपने पक्ष चुन लिए हैं जबकि सत्य कोई नहीं जानता मगर दुःखद यह है कि इस घटना की आड़ में अपनी कुत्सिल और दमित इच्छाओं को पूरा करने का जरिए पितृसत्तात्मक समाज ने निकाल लिया है । ऐसा नहीं है कि इस तरह की घटना पहली बार हुई है परन्तु पुरुषों का बड़ा वर्ग खुद को स्वयंभू मानता है और स्त्रियों को अधीनस्थ..यह मानसिकता खुलकर सामने आ गयी है । क्या यह सिर्फ पति – पत्नी का मामला है, वास्तविकता यह है कि है मगर इसमें से अपने अहं की तुष्टि के लिए कैंची और जंजीर लेकर चलने वाले स्त्रियों के पर काटने निकल पड़े और अब होगा यह कि स्त्रियाँ अपनी जंजीरें निकाल फेकेंगी ।
यह जो बार – बार आप कहते हैं कि हर पुरुष एक जैसा नहीं होता तो आप यह क्यों नहीं समझते कि हर एक महिला एक जैसी नहीं होती और सबसे बड़ी बात यह है कि आपने एक पक्ष को तो सुन लिया मगर दूसरे पक्ष की बात नहीं सुन रहे और न ही समझना चाहते हैं क्योंकि नहीं समझने में आपकी सत्ता है । नहीं समझने में आपकी कुंठा, अहंकार, अशिक्षा..सब छुप जा रही है…आप खुद को खड़ा नहीं कर सके तो अब जो स्त्रियाँ आगे बढ़ रही हैं, उनकी प्रगति में बाधक बन रहे हैं…जबकि वह स्त्री आपके घर में एक घरेलू सहायक नहीं है..। चाहे वह आपकी बहन हो या पत्नी हो, दोनों का अपना सम्मान है, उनका स्वतंत्र व्यक्तित्व है और आगे बढ़ना आपके द्वारा दी गयी भिक्षा नहीं बल्कि उनका अधिकार है जिसे आप छीन नहीं सकते ।
इसके साथ ही यह भी समझना होगा कि अपने सपने अपने दम पर पूरे किये जाते हैं, अगर आप किसी पर निर्भर रहकर आसमान छूना चाहती हैं तो आप शायद आसमान छू भी लें मगर उसे पा नहीं सकतीं और न ही वह पूरा आसमान आपका होगा । कम से कम शिक्षित स्त्रियों को अपना खर्च और अपनी जिम्मेदारियों का बोझ खुद उठाना चाहिए । कोई किसी पर भी निर्भर होगा तो जटिलताएं और बढ़ेंगी । बचपन से ही माता – पिता यह कड़वी सच्चाई अपने बच्चों को बताकर बड़ा करेंगे तो वह मानसिक रूप से मजबूत होंगे और भविष्य के लिए तैयार भी । इसके लिए जरूरी है कि समय की माँग को समझते हुए लड़कियों को दहेज की जगह पैतृक सम्पत्ति में उनका अधिकार दीजिए..क्लेश और कलुषता दोनों कम होगी ।
यह ठोकर बहुत जरूरी थी कि स्त्रियाँ अपनी नींद से जागें और अपना सम्मान प्राप्त करें..अपने अधिकारों की रक्षा के लिए आगे बढ़ें ।