Friday, November 21, 2025
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राम मंदिर आंदोलन से लेकर धर्म ध्वजा की स्थापना का ध्वजवाहक गोरक्षपीठ

श्रीराम की जन्मभूमि पर उनके मंदिर के लिए पांच सौ वर्षों की प्रतीक्षा के बाद वैश्विक विरासत पर गर्व कर रहे अयोध्याधाम में पांच वर्ष की अवधि में तीसरा कार्यक्रम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित होने जा रहा है। सुदीर्घ आंदोलन और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद 5 अगस्त 2020 को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का भूमि पूजन हुआ। 22 जनवरी 2024 को मंदिर में प्रभु रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई। अब 25 नवंबर को राम मंदिर के शिखर पर धर्मध्वजा हाे रही है। इस कार्यक्रम से गोरक्षनगरी गोरखपुर का स्वतः स्फूर्त जुड़ाव हो जाता है। कारण, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के लिए आंदोलन से लेकर धर्मध्वजा स्थापना तक गोरक्षपीठ की भूमिका ध्वजवाहक सरीखी है। 25 नवंबर को अयोध्या में होने वाला ध्वजारोहण समारोह राम मंदिर के लिए गोरक्षपीठ की पांच पीढ़ियों के अनिर्वचनीय योगदान का भी साक्षी बनेगा।

अयोध्याधाम में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पावन जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन तो ब्रिटिश शासनकाल मे ही शुरू हो गया था और इसमें गोरक्षपीठ की भूमिका महत्वपूर्ण रही। अपने कालखंड (1855 से 1885) में गोरखनाथ मंदिर के महंत रहे योगी गोपालनाथ ने और उनके बाद 1919 में ब्रह्मलीन हुए सिद्धयोगी बाबा गंभीरनाथ ने राम मंदिर आंदोलन का मार्गदर्शन किया। और, देश की आजादी के बाद इसे पहली बार बाकायदा रणनीति बनाकर संगठित स्वरूप दिया था ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ ने।

इतिहास के अध्येता और महाराणा प्रताप महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. प्रदीप कुमार राव के अनुसार श्रीराम जन्मभूमि को लेकर ठोस आंदोलन की नींव पड़ी देश के आजाद होने के बाद 1949 में। इसके रणनीतिकार थे वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के दादागुरु और मंदिर आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने वाले ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के गुरुदेव, तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ।

1935 में गोरखनाथ मंदिर का महंत बनने के बाद से ही दिग्विजयनाथ जी ने इस विरासत को गुलामी की त्रासदी से मुक्त बनाने की रणनीति बनानी शुरू कर दी थी। इसके लिए उन्होंने अयोध्याधाम के अलग-अलग मठों के साधु, संतों को एकजुट करने के साथ ही जातीय विभेद से परे हिंदुओं को समान भाव व सम्मान के साथ जोड़ा। 22/23 दिसंबर 1949 को प्रभु श्रीरामलला के विग्रह के प्रकटीकरण के नौ दिन पूर्व ही महंत दिग्विजयनाथ के नेतृत्व में अखंड रामायण के पाठ का आयोजन शुरू हो चुका था। श्रीरामलला के प्राकट्य पर महंत जी खुद वहां मौजूद थे। प्रभु श्रीराम के विग्रह के प्रकटीकरण के बाद मामला अदालत पहुंचा। इसके चलते विवादित स्थल पर ताला भले जड़ दिया गया पर पहली बार वहां पुजारियों को दैनिक पूजा की अनुमति भी मिली। दूसरे पक्ष ने भरसक यह प्रयास किया कि श्रीरामलला के विग्रह को बाहर कर दिया जाए लेकिन महंत दिग्विजयनाथ द्वारा बनाई गई रणनीति से यह प्रयास सफल नहीं हो सका। श्रीरामलला के प्रकटीकरण के बाद मंदिर आंदोलन को एक नई दिशा देने वाले महंत दिग्विजयनाथ 1969 में महासमाधि लेने तक श्रीराम जन्मभूमि के उद्धार के लिए अनवरत प्रयास करते रहे।

महंत दिग्विजयनाथ के महासमाधिस्थ होने के बाद उनके शिष्य एवं उत्तराधिकारी महंत अवेद्यनाथ ने अपना नेतृत्व प्रदान कर आंदोलन को विश्वव्यापी बनाया। अस्सी का दशक शुरू होने के साथ श्रीराम जन्मभूमि को लेकर आंदोलन के नए अंकुर फूटने लगे थे। इस आंदोलन को पुष्पित-पल्लवित करने के लिए पांथिक विविधता और मतभिन्नता से युक्त हिंदू समाज के धर्माचार्यों में जिस एक नाम पर सहमति थी, वह तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ का ही नाम था। 21 जुलाई 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में जब श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ तो महंत अवेद्यनाथ समवेत स्वर से इसके अध्यक्ष चुने गए और उनके नेतृत्व में देश में ऐसे जनांदोलन का उदय हुआ जिसने सामाजिक-राजनीतिक क्रांति का सूत्रपात किया। उनकी अगुवाई में अक्टूबर 1984 की धर्मयात्रा, 1989 में दिल्ली में हुए विराट हिंदू सम्मेलन, श्रीराम शिला पूजन के अभियानों ने आंदोलन को नई ऊंचाई दी और महंत अवेद्यनाथ की अगुवाई में हिंदू समाज तन, मन, धन से मंदिर निर्माण हेतु कारसेवा के लिए समर्पित होने लगा। 30 अक्टूबर 1990 और 2 नवंबर 1990 को कारसेवा के दौरान तत्कालीन सरकार के आदेश पर पुलिस फायरिंग में कई रामभक्त बलिदान ही गए। पर, दमनात्मक कार्रवाई के बावजूद महंत अवेद्यनाथ के नेतृत्व में आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने का संकल्प लिया गया। इस संकल्प का ही प्रतिफल रहा कि 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने विवादित ढांचे को ध्वस्त कर दिया। मंदिर निर्माण महंत जी का आजीवन लक्ष्य रहा।

गोरक्षपीठ के ब्रह्मलीन पीठाधीश्वरद्वय महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ का श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति और मंदिर निर्माण के लिए किया गया परिणामजन्य संघर्ष वर्तमान पीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देखरेख में मूर्तमान हुआ। यह दैवीय योग है कि श्रीराम मंदिर को लेकर शीर्ष न्यायालय का निर्णय (9 नवंबर 2019) आने के वक्त वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और इसके बाद मंदिर के शिलान्यास (5 अगस्त 2020) से लेकर श्रीरामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह (5 जनवरी 2024) की मेजबानी उन्होंने ही की। और, अब ऐतिहासिक ध्वजारोहण कार्यक्रम को भी उन्हीं की देखरेख में परिणाम तक पहुंचाया जा रहा है। अपने गुरुदेव महंत अवेद्यनाथ के सानिध्य में आने के बाद से ही श्रीराम मंदिर के लिए मुखर रहे योगी मुख्यमंत्री बनने के बाद अयोध्या को श्रीरामयुगीन वैभव देने के लिए प्राणपण से कार्य कर रहे हैं।

6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद मामला अदालत के निर्णय की प्रतीक्षा में भले ही था लेकिन योगी इस बात को मुखरता से रखते रहे कि राम मंदिर का निर्माण उनके लिए राजनीतिक मुद्दा नहीं बल्कि जीवन का मिशन है। श्रीराम मंदिर के चलते ही अयोध्याधाम उनके लिए अपने ही दूसरे घर जैसा है। अब तक के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में उन्होंने गोरखपुर के बाद सर्वाधिक दौरे अयोध्या के ही किए हैं। अयोध्या के लिए हजारों करोड़ रुपये के विकास कार्यों की सौगात देने के साथ उन्होंने जिले, कमिश्नरी का नामकरण फैजाबाद की जगह अयोध्या किया। इसके पहले श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या का नाम एक कस्बे के भूगोल में सिमट कर रह गया था। योगी के मुख्यमंत्रित्व काल में अयोध्या दुनिया की सबसे खूबसूरत धार्मिक-पर्यटन नगरी बन रही है।

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