पानीपत./शिमला. हिमाचल के सोलन की एसपी अंजुम आरा की गिनती तेज-तर्रार IPS ऑफिसरों में की जाती है। उनकी छवि एक सख्त लेडी आईपीएस अफसर की है। बता दें कि अंजुम कानून व्यवस्था के साथ-साथ एक मां की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रही हैं। वे एक नन्हें बच्चे की मां है। ड्यूटी के साथ 2 साल के अपने बच्चे अरहान का ख्याल रखना चुनौती भरा काम है, लेकिन वो दोनों कामों में सामंजस्य बिठा लेती हैं।
अंजुम कहती हैं, एक एसपी की ड्यूटी के साथ अपने छोटे बच्चे के लिए वक्त निकालना मुश्किल होता है। कई बार इसका बुरा भी लगता है, लेकिन हमेशा कोशिश रहती है कि ड्यूटी और मां की जिम्मेदारियों में सामंजस्य बनाए रखें। उनका संदेश है कि लोगों को बेटा-बेटी को समान समझकर उनका भविष्य निर्माण करना चाहिए। लड़कियों को भी पढ़ लिख कर आगे बढ़ने का मौका दिया जाना चाहिए। लड़कियां किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़कर अपने माता-पिता का नाम रोशन कर सकती हैं।
इसलिए पुलिस सेवा को बनाया करियर
अंजुम आरा को देश की दूसरी महिला आईपीएस बनने का गौरव प्राप्त है। सोलन जिला की वह पहली महिला एसपी हैं। वह लोगों के साथ सीधे संपर्क को समाज सेवा का बड़ा साधन मानती हैं। पुरुष प्रधान समाज की मान्यताओं को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने पुलिस सेवा को चुना। अपनी इसी सोच और पुलिस वर्दी के प्रति आकर्षण ने ही उन्हें आईपीएस तक पहुंचाया। वे हिमाचल में सोलन जैसे बॉर्डर से जुड़े अति संवेदनशील जिला की कानून व्यवस्था संभाले हुए हैं। उत्तर प्रदेश की लखनऊ से संबंध रखने वाली अंजुम 2011 बैच की आईपीएस अधिकारी हैं।
डर की दहलीज से आईपीएस की मंजिल तक पहुंचाया : प्रीति चंद्रा
मेरी मां ने तो कभी हाथ में पेंसिल भी नहीं पकड़ी थी। लेकिन जिद की हम दो बहनों और एक भाई को पढ़ाने की। कॉलेज में आई तो रिलेटिव ने शादी का दबाव डालना शुरू किया। लेकिन मां चट्टान बनकर उनको डटकर जवाब देतीं। वो मुझ पर इतना भरोसा करती थीं कि जब घर से तीन किमी दूर खेतों में काम करने जातीं तो अक्सर घर की चाबियां वहीं भूल आती थीं। रास्ते में श्मशान पड़ता था। और बड़े भाई के होते हुए भी रात को 8 बजे मुझसे कहती जाओ, भागकर चाबियां लेकर आओ। बस इसी विश्वास ने मुझे आईपीएस ऑफिसर बनाया। हम दोनों बहनों ने इंटर कास्ट मैरिज की लेकिन वो हमारे सपोर्ट में खड़ी रहीं।
चैलेंजिंग कॅरिअर में सपोर्ट सिस्टम न हो तो चुनौतियां बढ़ जाती हैं। पति विकास पाठक के अलावा मेरे गांव की एक 22 साल की लड़की मेरा सपोर्ट सिस्टम है। आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से गांव में वो पढ़ नहीं सकती थी। इसलिए मैंने उसकी पढ़ाई से लेकर शादी का जिम्मा उठाया है। वो मेरी बड़ी बेटी की तरह है और जब मुझे कई दिन तक टूर पर जाना पड़ता है तो वो मेरे घर और बेटी का ध्यान रखती है। मैं भी अपनी बेटी को सिर्फ आजादी देना चाहती हूं जिससे वो बिना सरहदों के आसमां में पंख फैला सके।





