कोरोना को लेकर दो हिस्सों में बँटे लोग दिख रहे हैं। एक अत्याधिक सजग तो एक वह, जो इसे अपनी विचारधारा को पुख्ता बनाने का मौका मान रहे हैं। अत्याधिक सजग लोग खुद डर रहे हैं और दूसरे वर्ग के लोग बेशर्मी पर उतर आये हैं। अभी भी इनको जाति वाली राजनीति चाहिए। कुछ ऐसे हैं जो ईश्वर के होने पर सवाल उठा रहे हैं तो कुछ ऐसे हैं जो मंदिर और मस्जिद पर सवाल उठा रहे हैं। हालाँकि तबलीगी जमात की हरकतों के बाद इनके पास ऐसा करने की एक वजह मिल गयी है मगर इससे होगा क्या?
वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश और बिहार के मजदूरों का पलायन जारी है। ये गरीब अपने ही देश में बेगाने हैं और नर्क झेल रहे हैं। कहीं कुछ छिड़का जा रहा है तो कहीं कुछ..देश के कोने -कोने से खबरें आ रही हैं….वह चले जा रहे हैं…नंगे पैर….धूम में…ठीक उसी वक्त जब आप अपने मोबाइल पर स्टेटस डाल रहे होते हैं…उसी वक्त एक बच्चा चलते -चलते थककर बैठ जाता है…आप परिवार के साथ हैं…वह परिवार से दूर… पलायन का सिलसिला जारी है। इन लोगों को कहीं पुलिस से खाने को कुछ सामान मिल जाता है, तो कहीं आम नागरिकों मदद के लिए आगे आ जाते हैं। अपने बीवी-बच्चों और परिवारों के साथ अपने किराये के छोटे से कमरे को छोड़, घर की ओर पलायन करने वालों की यह भीड़ थोड़ी-थोड़ी देर में घटती-बढ़ती रहती है। कुछ गठरियां, कुछ पोटलियां और थोड़ा सा पानी लेकर लोग निकल पड़े हैं। इस आस में कि कहीं कोई बस या ट्रक मिल जाये। किसी के कॉन्ट्रेक्टर ने काम बंद कर दिया तो किसी को मकान मालिक ने निकाल दिया। किसी को दिहाड़ी के लिए कोई काम ही नहीं मिल रहा, तो कोई तीन दिन से भूखा है। कोरोना ने मानो इन लोगों की जिंदगियों पर ही ताला जड़ दिया है। कुछ तो भूख से मर भी जा रहे हैं…आखिर इस अन्यास का हिसाब कौन देगा…?
हमारी समझ में यह बिहार व झारखंड के अप्रवासियों और शिक्षित मुसलमानों के जागने का समय है। ये वक्त है जब वे अपनी जानकारी, ज्ञान और हुनर से अपने राज्य औऱ कौम के लोगों के साथ खड़े हो सकते हैं…इनकी तकदीर को अपने स्टार्ट अप से नयी दिशा दे सकते हैं। शिक्षा के जरिए जिन्दगी बदल सकते हैं। यह मौका ही नहीं आपकी जिम्मेदारी भी है।
इसी जिम्मेदारी के तहत शुभजिता में हमार माटी स्तम्भ हमने शुरु किया है। इसके बारे में आप इस स्तम्भ में पढ़ भी सकते हैं और सुझाव भी दे सकते हैं…शुभ रामनवमी…।