यदि राम मंदिर बन सकता है तो हिंदी राष्ट्रभाषा भी हो सकती है

-समर्पण ट्रस्ट द्वारा आयोजित हिंदी के उत्थान में हिंदीत्तर प्रांतों का अवदान विषयक संगोष्ठी व सम्मान समारोह संपन्न

कोलकाता । हिंदी अभी तक राजभाषा है। केंद्र सरकार यदि बहुप्रतीक्षित राम मंदिर का निर्माण कर सकती है तो हिंदी भी राष्ट्रभाषा बन सकती है। मैं चाहूंगा कि केंद्र सरकार हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए प्रस्ताव लाये और इसे राष्ट्रभाषा बनाया जाय। यह कहना है तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता, पूर्व विधायक, अंतरराष्ट्रीय मारवाड़ी सम्मेलन तथा समर्पण ट्रस्ट के अध्यक्ष दिनेश बजाज का। श्री बजाज ने उक्त बाते समर्पण ट्रस्ट के तत्वावधान में हिंदी पखवाड़ा के अंतर्गत हिंदी के उत्थान में हिंदीत्तर प्रांतों का अवदान विषयक एक दिवसीय संगोष्ठी में कहीं। ट्रस्ट की सक्रिय सदस्य प्रीति ढेडिया ने ट्रस्ट की विभिन्न गतिविधियों की जानकारी दी। उन्होंने भविष्य में इस तरह के और आयोजनों पर जोर दिया। बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर शिक्षा विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. डा. सोमा बंद्योपाध्याय ने संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए कहा कि हिंदी रोजगार की भाषा है। हिंदी के विकास में बंगाल के साथ-साथ गुजरात, राजस्थान व महाराष्ट्र का भी उल्लेखनीय योगदान है। बांग्ला और हिंदी में आत्मीय संबंध है और अन्य भाषा के लेखक जब तक हिंदी में अनुदित नहीं होते तब तक भारतीय लेखक नहीं होते। प्रो. बंद्योपाध्याय ने ट्रस्ट को भविष्य पुस्तक लेखन कार्य़शाला आयोजित करने की सलाह दीं। इसके प्रतिउत्तर में ट्रस्ट के महासचिव प्रदीप ढेडिया ने जल्द ही इस आशय का कार्य़शाला आयोजित करने का आश्वासन दिया। संगोष्ठी के प्रधान वक्ता प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर वेदरमण ने कहा कि हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं बल्कि एक संस्कृति है, एक जातीयता है। हिंदी के विकास में स्थापितों व विस्थापितों की महत्ती भूमिका है। विद्यासागर कालेज फार वुमन के सहायक प्राध्यापक डा. अभिजीत सिंह ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि समर्पण ट्रस्ट ने इस संगोष्ठी में संस्थाओं का एक कुंभ लगाया है अर्थात शिक्षा, साहित्य व समाज सेवा का कुंभ, जिसमें श्रोता डुबकी लगाकार खुद को धन्य महसूस कर रहा है। वरिष्ठ पत्रकार श्री कौशल किशोर त्रिवेदी ने कहा कि राजनेताओं ने हिंदी का बहुत नुकसान पहुंचाया है। वहीं वरिष्ठ पत्रकार संजय हरलालका ने हिंदी के शब्दों की व्यवहारिकता पर प्रकाश डाला। पूर्व प्रधानाचार्य तथा हिंदी सेवी दुर्गा व्यास ने कहा कि हिंदी के विकास में बंगाल का बड़ा योगदान रहा है। इसके साथ पंजाबी व अन्य गैरहिंदी भाषी लेखकों का बड़ा योगदान रहा है। काजी नजरूल विश्वविद्यालय की सहायक प्राध्यापक डा. काजू कुमारी साव ने कहा कि हिंदी जीवन जीने की आस्था जगाती है। पंचानन वर्मा विश्वविद्यालय की सहायक प्राध्यापक रीता चौधरी ने कहा कि हिंदी हमारी मां है तो भारत की अन्य भाषाएं हमारी मौसी है। वरिष्ठ उद्योगपति व हिंदी सेवी ईश्वरी प्रसाद टांटिया ने भी हिंदी की महत्ता पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी में शिक्षाव्रती सरदारमल कांकरिया को आजीवन उपलब्धि पुरस्कार 2024, डा. ऋषिकेश राय को साहित्य सेवी सम्मान 2024 तथा अजयेंद्रनाथ त्रिवेदी को राजभाषा सेवा सम्मान 2024 दिया गया। इस मौके पर श्री कांकरिया ने कहा कि हिंदी राष्ट्रभाषा बन सकती है लेकिन राजनीति ने इसका बेड़ा गर्क किया है। वर्तमान सरकार चाहे तो हिंदी राष्ट्रभाषा बन सकती है। वहीं डा. ऋषिकेश राय ने कहा कि लेखक सम्मान के लिए नहीं लिखता परंतु इससे उसे आश्वस्ति मिलती है। लेखन के लिए सामाजिक स्वीकार्यता भी आवश्यक है। इस मौके पर विभिन्न समाचार पत्रों के संवाददाताओं को समर्पण पत्रकार गौरव सम्मान 2024 तथा स्कूलों को सम्मान प्रदान किया गया। संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के तौर पर उद्योगपति राजेंद्र खंडेलवाल, जय प्रकाश सिंह, जय प्रकाश सेठिया, ज्योतिषाचार्य राकेश पांडे, कैलाशपति तोदी तथा ललित-शशि कांकरिया उपस्थित थे। संगोष्ठी का कुशल संचालन महावीर प्रसाद रावत ने किया। संस्था के सलाहकार डा. जयप्रकाश मिश्र ने धन्यावद ज्ञापन किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में संस्था के सभापति श्यामलाल अग्रवाल, अशोक ढेडिया, जन-संपर्क अधिकारी अभ्युदय दुग्गड़, पंकज भालोटिया, पवन बंसल, महेश भुवालका, पवन खेतान, सावित्री रावत, राकेश मिश्र, आनंद ढेडिया, राजेश सिंघानिया, संदीप खंडेलिया, पंकज अग्रवाल, पवन मोर, मनोज पांडे, अमन ढेडिया सक्रिय रहे।

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