मुंशी प्रेमचंद की किस्सागोई का तिलिस्म लमही बनेगा ई – विलेज

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद का गांव लमही महज एक गांव नहीं है, यहां कथा सम्राट की कहानियों का तिलिस्म भी है। ईदगाह के हामिद का चिमटा, गोदान का होरी और नमक का दरोगा का नायक…। सब लमही की उस लाइब्रेरी में अपनी शिद्दत के साथ मौजूद हैं। मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों जैसी ही है उनके गांव की कहानी। लमही को उत्तर प्रदेश सरकार ने एक बहुत बड़ा तोहफा दिया है जो उस महान लेखक को श्रद्धांजलि स्वरुप है। उत्तर प्रदेश सरकार ने लमही को प्रदेश का पहला “ई-विलेज” घोषित करने का फैसला लिया है। अब यहां की सारी जानकारी एक क्लिक में प्राप्त होगी। साथ ही ग्रामीणों का एक विशिष्ट कोड भी बनाया जाएगा। इस बात से ग्रामीणों में ख़ुशी की लहर है।

इस बारे में ज़िलाधिकारी प्रांजल यादव ने बताया कि “हम सभी जानते हैं कि आज युवा पीढ़ी गांवों से निकलकर शहर की ओर रुख कर रही है क्योंकि गांवों में सुविधाओं का टोटा (अभाव) है। मुंशी प्रेमचंद के गांव का महत्व भारतीय इतिहास में बहुत मायने रखता है। इस गांव के अस्तित्व को बचाने के लिए ज़िला प्रशासन और राज्य सरकार संकल्पित है।”

मुंशी जी के गांव के लोगों को हर तकलीफों से निजात मिल सके और यहां की भावी पीढ़ी इसे विश्व पटल पर स्थान दिलाने के लिए लमही में ही काम करे, इस दिशा में काम करते हुए राज्य सरकार ने इसे “ई-विलेज” घोषित किया है। अब जल्द ही लमही के घर-घर का डेटा ऑनलाइन होगा। सभी का खसरा, खतौनी, आय-जाति और निवास प्रमाण-पत्र ऑनलाइन होगा। इसके अलावा आधार कार्ड, जॉब कार्ड, सभी ऑनलाइन होंगे। साथ ही गांव वालों की एक विशिष्ट आईडी बनायी जायेगी जो सभी जगह मान्य होगी।

मुंशी प्रेमचंद्र ने हर तरफ से निराश हो कर खाली हो चुके ‘पूस की रात’ के हल्कू की जिस संवेदना को समझा था वही आगे चल कर ‘सवासेर गेहूं’ के कर्ज के कम्बल में लिपटी किसान की हताशा के रूप में दिखाई पड़ी। जिसका कर्ज आने वाली पीढ़ी भी अदा नहीं कर पाती है। तो वही ‘कफ़न’ का घीसू और माधव बन जाता है। जिसकी सूख चुकी संवेदना आज भी मुंशी जी के गांव में दिखाई पड़ती है।

वाराणसी जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर वाराणसी-आजमगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर पांडेयपुर चौराहे से करीब पांच किलोमीटर का यह रास्ता पूरा होने पर जैसे ही गोदान के होरी-धनिया, पूस की रात के हलकू जैसे किरदारों के जनक मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही का प्रवेश द्वार आता है, उनकी छाप महसूस होने लगती है।

उपन्यास सम्राट की अमर कहानियों के बीच उनके बचपन की झलक दिखाता एक गिल्ली डंडा भी। सच ये है लमही की पहचान प्रेमचंद हैं और उनकी कहानियों का मर्म यहां की आब-ओ-हवा में घुला है। लमही गांव में मुंशी प्रेमचंद स्मारक स्थल पर प्रेमचंद स्मारक न्यास लमही की एक लाइब्रेरी है।
मुंशीजी के उपन्यासों, कहानियों की यह लाइब्रेरी सिर्फ एक पुस्तकालय तक ही सीमित नहीं है। कोशिश है कि न केवल उनकी किताबों को पढ़ा जाए, बल्कि प्रेमचंद को समझा जाना जाए। बचपन में मुंशी प्रेमचंद अक्सर दोस्तों के साथ गिल्ली डंडा खेला करते थे। ये उनका पसंदीदा खेल था।

 


इस लाइब्रेरी में मौजूद गिल्ली डंडा उनके बचपन के इसी पहलू को दिखाता है। इसी तरह यहां रखी पिचकारी भी उनके होली के त्योहार से जुड़े रहने का एहसास कराती है। भला ईदगाह कहानी के हामिद के चिमटे को कौन भूल सकता है। हामिद ने खिलौनों के बजाय इसे अपनी दादी के लिए खरीदा था।

मानवीय संवेदना, पारिवारिक मूल्यों के उसी भाव को दर्शाता है यहां रखा चिमटा। यहां उपलब्ध किताबों की लंबी फेहरिस्त में वो ‘जमाना’ भी है, जिसे अंग्रेजों ने जला दिया और वो समर यात्रा भी इसे अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया था। प्रेमचंद स्मारक न्यास लमही के अध्यक्ष सुरेश चंद्र दुबे का कहना है कि इस गांव में अब भी कफन की बुधिया, बूढ़ी काकी और निर्मला जैसे किरदार हैं लेकिन अब उनके दर्द को लिखने वाला कोई नहीं।

गौरतलब है कि आज़ादी के बाद से अब तक हर साल न जाने कितनी घोषणाएं सरकारें करती रही लेकिन कोई भी मुकम्मल तौर पर पूरी नहीं हुई है। यही वज़ह है कि इस योजना को भी लेकर लोगों में संशय है। अब तो वक़्त ही बताएगा कि मुंशी जी का गांव कब तक “ई-विलेज” बनेगा।

 

 

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