जम्मू-कश्मीरः कश्मीरी पंडित करा रहे बेटियों का यज्ञोपवीत संस्कार

बेटा-बेटी समान समझे जाने को लेेकर वैसे तो कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम देश में चल रहे हैं, लेकिन कश्मीरी पंडित समाज में इसको लेकर अलग ही तरह की बयार बह निकली है। हरियाणा में रह रहा कश्मीरी पंडित परिवार अगले माह अपनी दो बेटियों का यज्ञोपवीत संस्कार समारोह आयोजित कर एक बड़ा संदेश देने की इस मुहिम में शामिल होंगे।

पनुन कश्मीर के कन्वीनर, साहित्यकार एवं इस मुहिम का बीड़ा उठाने वाले अग्निशेखर कहते हैं कि इस वर्ष समाज के सात परिवार लड़कियों के जनेऊ संस्कार करा रहे हैं। इसे धार्मिक या कट्टरपंथ न मानकर एक सामाजिक अभियान माना जाए।हिंदू समाज में सदियों से लड़कों को ही जनेऊ धारण कराने की परंपरा चली आ रही है।
हालांकि वेदों में हजारों साल पहले लड़कियों के भी जनेऊ धारण के लिए यज्ञोपवीत संस्कार, उपनयन संस्कार या मेखल का जिक्र है। उपनयन का अर्थ बच्चे को गुरु के समीप ले जाना होता है, जिसके बाद दीक्षा ग्रहण करने वाले बालक को यज्ञ करने का अधिकार भी प्राप्त होता है।
दक्षिण भारत के कुछ इलाकों, बिहार के बक्सर और गोरखपुर में पूर्व सांसद व लेफ्टिनेंट जनरल के अपनी नातियों को जनेऊ धारण कराने के कुछ अपवाद छोड़ दें तो कहीं भी लड़कियों को जनेऊ धारण नहीं कराया जाता। फरीदाबाद के सेक्टर 21 डी में स्थित महाराजा अग्रसेन मंदिर में 23 नवंबर को अरविंद रैना और रचना अपनी बेटियों अनुष्का और आरोही का यज्ञोपवीत संस्कार कराने जा रहे हैं। इन ऐतिहासिक क्षणों का हिस्सा बनने के लिए जम्मू व देश के अन्य शहरों से भी लोग जाएंगे।
दीक्षा दिलाने वाले पंडित भी जम्मू से ही जाएंगे। इन बच्चियों की चाची खंडा बताती हैं कि बच्चियों के जन्म के समय ही उन्हें जनेऊ धारण कराने का सोचा गया था। अब समाज के इस ओर कदम बढ़ाने से हमें हौसला मिला है। इसके अलावा जम्मू सहित देश भर में कुल सात कश्मीरी परिवार की बेटियों के भी जनेऊ धारण कार्यक्रम शुभ मुहूर्तों के दिन आयोजित होंगे। अमेरिका से एक परिवार अमृतसर पहुंचकर बेटी का दीक्षा समारोह आयोजित कराएगा। लड़कियों को भविष्य में जनेऊ धारण कराने के लिए समाज के अन्य लोग भी जम्मू में पंडितों से संपर्क कर रहे हैं।

लड़कियों को कई नियमों से छूट भी

कश्मीरी समाज में लड़कियों के लिए सांकेतिक माने जा रहे जनेऊ संस्कार में कई नियमों में छूट भी रखी गई है। अग्निशेखर के अनुसार जनेऊ धारण करते समय यज्ञ में बैठने के लिए उन्हें मुंडन से छूट दी गई है।

इसी तरह मासिक धर्म की वजह से लड़कियां जनेऊ धारण करने के बाद उसका विसर्जन कर सकतीं हैं। परंपरा के अनुसार शादी के बाद पुरुष के जनेऊ में तीन की जगह छह धागे हो जाते हैं। ये तीन धागे पत्नी के नाम के होते हैं। ऐसे में शादी के बाद भी लड़की जनेऊ पहनना छोड़ सकती है।

(साभार – अमर उजाला)

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