‘द बुक ऑफ राम’ रामायण के नायक श्रीराम पर केन्द्रित और उनके चरित्र को ध्यान में रखकर नये सन्दर्भं में लिखी गयी पुस्तक है। पुस्तक देवदत्त पट्टनायक ने लिखी है जो मिथकीय खोजपरक दृष्टि के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने महाभारत के उपेक्षित पात्र शिखंडी पर भी लिखा है और इस बार वे रामायण के प्रमुख पात्र श्रीराम पर बात करते हैं।
राम को विभिन्न रूपों में इस पुस्तक में देखा गया है। पति, पुत्र, प्रेरणा समेत अन्य सम्बन्धों के आलोक में लेखक ने श्रीराम को देखा है। उनकी यह किताब हिन्दूत्व की मूल अवधारणा से छेड़छाड़ करने वालों पर करारा प्रहार करती है। यह राम राज्य की वास्तविक अवधारणा पर बात करती है जो किसी काल, खंड और स्थान तक सीमित नहीं है बल्कि शान्ति और एकता का सन्देश देती है।
लेखक के मुताबिक राम राज्य की अवधारणा हृदय में प्राप्त की जा सकती है। पट्टनायक को उद्धत करते हुए कहा जा सकता है कि ‘वह (श्रीराम) हमारी आत्मा हैं।’ लेखक अनुभवजन्य सत्य को एकमात्र सत्य मानने वाली शिक्षा प्रणाली की आलोचना करते हैं। पुस्तक धर्म और विज्ञान के बीच की लम्बी बहस को एक बार फिर नया स्वर देती है। वह उस एकरेखीय और चक्रीय समीक्षा दृष्टि का अन्तर भी सामने रखते हैं। हालाँकि पुस्तक एक आदर्शवादी दृष्टिकोण को अपनाती है जिसे तथाकथित भौतिकवाद की दृष्टि से समझना कठिन हो सकता है। हालाँकि मिथक और इतिहास में एक अन्तर अपेक्षित है मगर इसकी विभाजक रेखा स्पष्ट नहीं हो सकती। अँग्रेजी में लिखी गयी इस पुस्तक की भाषा सरल है। पुस्तक का आवरण चित्र अरुन्धती बसु ने बनाया है।
पुस्तक का नाम – द बुक ऑफ राम
लेखक – देवदत्त पट्टनायक
प्रकाशन वर्ष – 2009
प्रकाशक – पेंग्विन बुक्स इंडिया
कीमत – 299 रुपये
(स्वर्णिमा को पौराणिक चरित्रों में रुचि है। वे इस पर पढ़ती हैं और यह कहीं भी प्रकाशित उनकी पहली समीक्षा है। )